ज्यादातर समय मनुष्य जब आगे बढ़ने लगता हैं तो उसे कोई जो भी योग्य नही है, वह रटा हुआ एक राग अलापते है जिसे प्रेम का नाम दिया जाता हैं और जिन्हें कुछ भी नहीं आता वो खुद को इस अंकेन्डिशन लव की आड़ लेकर स्वयं को उस से बेहतर बताते है जो वो खुद नही होते,अब प्रश्न यह उठता है कि क्या जो जीव को यह समझ मे नही आता कि यह संबंधित व्यक्ति क्या चाहता है, आता हैं पर जो लोग किसी दूसरे पर इस तरह से अतिक्रमण करते है वे ही स्वयं को योग्य साबित करते है जबकि होते नही,जीवन के रहस्य आसानी से हर किसी को नही मिलते इसके परिणाम स्वरूप कही क्रोध का जन्म हो सकता हैं या फिर अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लग जाता हैं तो जब कोई जवाब नही मिलता हैं क्या किया जाये और जिनको इस बात का अहसाह भी नही की मर्यादा क्या होती हैं वे निश्चित ही किसी न किसी तरह की तकलीफ तो उठाये गे ही,जो दूसरों की शक्तियों को स्वयं लेते है बिन उसकी मर्जी के ऐसे लोग ही युद्ध को निमंत्रण देते है,जिन्हें ये लगता हैं कि वह व्यक्ति जो ठीक है और अपनी सुरक्षा करना जनता है वे उसे बार बार तंग करते है ये जीव माफी के काबिल नही होते, ये सिर्फ स्वार्थी होते है, बुद्