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अक्तूबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मानसिक दशा और जीवन😀

मानसिक दशा सिर्फ, मनुष्य में ही नहीं होती,बल्कि जीव जंतु और पेड़ पोधो में भी होती हैं,जिस तरह व्यक्ति पर वातावरण असर डालता है,, उसी तरह बाकी पर भी,इसका असर होता हैं, ये कोई व्यक्ति तब समझ पाता है,,जब वो इन से जुड़ा हुआ हो,प्रत्येक का इस प्रकृति में अपना स्थान है पर ये जरूरी नहीं,की सब इसे महसूस कर, सकें, हा काफी हद तक विज्ञान के प्रयोग इसे समझ ते हैं,लेकिन, कुछ ऐसा भी। है, समझ से परे हैं,या ये कहे। की सब के लिए जानना आवश्यक नहीं,,पर मनुष्य जो भी सहायता करते है,,वैसे ही बाकी। प्रकृति भी करती हैं, मल्लिका जैन 😀 अस्तु

संबंध और धर्म

अक्सर कहते है,जीने के लिए किसी का भी,समूह  में रहना जरूरी होता हैं,लेकिन,सत्य ये है कि,कितने ही व्यक्ति समूह में रह कर,भी अकेले होते है,जबकि हमेशा कुछ जाने पहचाने व्यक्ति उनके साथ होते है, इस बात को समझ ने कि कोशिश करते है,क्या होता है? व्यक्ति के विचार,उसे समूह से जोड़ कर रखते है, फ़िर भी उसी समुह के व्यक्ति,एक विचार वाले होते हुए भी अलग अलग वातावरण में बड़े होने के कारण,और कभी कभी एक वातावरण के होते हुए भी मानसिक स्तर पर अलग होते हैं,लेकिन कार्यप्रणाली एक हो सकती हैं,व्यक्ति के दिमाग और कार्य व्यवस्था का सन्तुलन ही सामान्य को आगे ले कर जा सकता है यही बात जब किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में,कही जाए जों वस्तव में स्वयं में परिवर्तन चाहता हो,न कि अन्य में,तो ये बात  बादल सकती हैं क्योंकि यहां ऊर्जा के स्तर पर कार्य होते है,यह परिवर्तन,व्यक्ति की ईच्छा होते हुए भी,किसी और के द्वारा होते है,क्योंकि यहां "कार्य और कारण" का प्रमाण वह ही समझ पाता है जो इस तरह की वास्तविक अवस्था से निकाल चुका हो,ये बात जितनी आसानी से मैं लिख रही हूं उतनी आसनी से समझ में नहीं आती, क्योंकि योग्यता का माप

आरोग्य और बुद्ध

बुद्ध ने आरोग्य के नाम पर लोगो को ठगा नहीं, न ही कभी किसी की शक्तियों को नस्ट किया, वे हमेशा इस पक्छ में ही रहे की लोग उसका दूर उप योग न करें,आज का समय लोगो के लिए तकलीफ दायक या फिर किन्ही के लिए स्वासथ्यवर्ध्दक इसलिए भी ही गया है,क्योंकि यहां,पर कई छेत्रो में व्यक्ति की वास्तविक ऊर्जा का प्रयोग लोग स्वयं करते हैं और, इन्सान सिर्फ इतना ही समझ ता है उसने कुछ नहीं किया क्योंकि,एक ऐसे एहसास, में रखा जाता है जनहा लोग उस के साथ कुछ भी करें,उसका इंसान को पता ही नहीं चलेगा की उसने क्या किया?तो अच्छा यही है,की आरोग्य,याने स्वास्थ्य के नाम पर ढोंग,न ही किया,जाए तो,बेहतर, बुद्ध ने कभी भी किसी के अध्यात्मिक,तथ्य का उलंघन नहीं किया, है न ही ये कहा की,आप किसी दूसरो के अधिकरबका उलंघन करें,क्या किसी ने कभी भी ये सोचा है की क्या होगा,जब कोई व्यक्ति,ही किसी व्यक्ति को किन्ही कारणों से यहां से वहां भेज दे,और खुद उस व्यक्ति को पता ही न चलें,क्योंकि,,आप से जों लोग ऊपर है या जो तथा कथित अपने आप को ऊपर समझ ते हैं आप को आराम के नाम पर, एक नई, अवस्था में डाल दे,और आपको ये पता ही न चलें,की आप ने किया क्या, इसल

हंसी😂

कभी किसी ने सोचा है,हंसी कितनी प्यारी है,ये,तब आती हैं,जब,हम भी पता नहीं होता कि हम हंस देंगे, इट्स, ब्यूटीफुल, क्या कभी किसी साधू को हंसते हुए देखा है,जो उसकी वास्तविक अवस्था में हो,ऐसी हंसी,जब भी आती हैं ये कल्याण कारी होती हैं,मुझे लगता हैं,बुद्ध भी  कभी संघ में हंसते होंगे बिल्कुल इंसान जैसे,ही,सोचिए कि बुद्ध जब हंसते हो तो कितनों का कल्याण होता होगा, एक बार बुद्ध से (भंते,नाम याद नहीं इसलिए इसका प्रयोग किया) ने पूछा,आप क्या इस्त्री को संघ में शामिल क्यों नहीं करते वे भी इसकी अधिकारी है,तब बुद्ध मुस्कुरा दिए,और फिर इस्त्री संघ की स्थापना भी हुई,जिन्हें हम कई नामों से जानते हैं,ये सच है कि इनके बारे में कम लिखा या सुना गया,या फिर उन्हें किसी रहस्य जैसा रखा गया,क्योंकि यहां जो नियम है,जिनमें स्पर्श, स्वाद,आदि का वर्णन मिलता है,ये भी स्वत ह शामिल हो गए,ऐसी इस्थीती में,निश्चित ही,कुछ विशेष नियम बने,और पल्लवित भी हुए, जिनमें से कई को लोग,बुद्ध के इस्त्री स्वरूप के रूप में भी मानते,है उन्हीं में से एक है, देवी तारा, कम ही लोग इस बात को जानते है कि,"तारा" बुद्ध का हंसता हुए और क

क्रिएटिंग अनवर्नमेंट फ़ॉर बिलीव

बुद्ध ने शायद ही कभी इस बात का अंदाज लगाया होगा, की,उनकी कही हुई, बातों का अभी इस प्रयोग भी होगा, जब लोग इस बात को,ठीक वैसा ही समझ पाएंगे,जैसा वे कहतें है,संघ में बुध्द ने,कभी भी इस बात से इनकार नही, किया कि तकलीफ होने पर ट्रीटमेंट न किया जाएं, बल्कि हमेशा,यह बतलाया कि हम सही ,तरह से उपाय औषधि का प्रयोग करे,वे ये अच्छी तरह सर जानते,और समझ ते थे,की,एक ऐसी इस्थिति, भी आई हैं, जब सही, तरह से,वास्तविक स्थिति नही बनती तो लोग उसका गलत,फायदा भी उठा सकतें, है,इसलिए,उन्होंने स्वयं इस बात का ध्यान संघ में रखा,की,स्वयं में ही अर हत्व की प्राप्ति हो, ताकि, कोई,नकली वातावरण तैयार न करे, साथ ही,समर्थ वान ही बुद्ध बन सकें, क्योंकि जब कोई इस वास्तविक इस्थिति में पहुंच जाते हैं तो, उन्हें,अपने आप, ही एक ऐसी अवस्था की प्राप्ति होती हैं, जो प्रशंशा के योग्य होती हैं, न कि किसी का मज़ाक, या फिर धोखा दे कर,वर किसी व्यक्ति को वाहक बनाने के खिलाफ ही रहें,साथ ही यह भी ध्यान रखते थे कि, कोई, अनुभव के स्तर पर भी,योग्य हो न कि दिखावा करने वाला,यही कारण था कि लम्बे समय तक उन्होंने, इस्त्री वर्ग को संघ में नही लिया

वातावरण🌐

वातावरण में कई तरह से परिवर्तित होता रहा है, जिससे बुद्ध कालीन समय भी अछूता नहीं है,फर्क इतना है, तब मानव जाति और बाकी लोगों की शरिक आकृति में,अधिकतम लम्बाई हुआ करती थी मतलब उनकी हाइट, और उसी अनुपात में मोटापा भी जिसे हम आज कल फेट के नाम से भी जानते हैं, तो आज का वातावरण विशेष रूप से साल 2020 एक अद्भुत क्षमता वाला समय है,यंहा,अनगिनत परिवर्तन हो रहे है,, जिन्हें देखकर हमे या विज्ञानिको को ये लग सकता हैं कि वे इसे समझते हैं,(पर वास्तव में धर्म और विज्ञान एक सिक्के की तरह ही है) यंहा, अनगिनत संभावनाएं हैं, बात सिर्फ इतनी है कि हम वास्तविक नज़रिया कैसा रखते हैं,और बुद्ध इस बात को इतनी अच्छी तरह से समझते थे कि,उन्हों ने कहा "नमो तस्य भगवतो अरहतो सम्मासम बुधस्य"जो वर्ग इस बात को समझ लेते हैं, वे लोग नाराज हो या खुश हो या फिर सामान्य अर्थात न्यूटल, वे सदैव,एक ऐसी दशा में रहते हैं, जो शायद वे ही समझ सकते हैं, आप कुछ भी करें एक न एक दिन यह नियम लागू हो ही जाता हैं मल्लिका जैन😁 अस्तु

🛢संघ और धर्म🔮

"संघ और धर्म" एक सिक्कें के दो पहलू की तरह है, "जब कोई ऐसा व्यक्ति,जो मानसिक,सामाजिक,शारीरिक,और धन का उपयोग कान्हा और कैसे किया जाए ये जान जाता हैं तो वह यदि अपने आप मे भावनात्मक तत्व को भी उतना ही मजबूत कर लेते है, तो लगभग बुद्ध जैसी इस्थिति बन सकती हैं,  ऐस व्यक्तित्व का जो वास्तविक स्वामी याने की ठीक ऐसा ही जानने और समझने वाला होता हैं, तो उसके साथ,ऐसे व्यक्ति जुड़ते हैं जो किन्ही कारणों में से एक न एक विचार धारा को समझ सकते हैं यह ही वस्तविक संघ का मतलब होता हैं।" अब बुद्ध ने धर्म नही बनाया था और न ही संघ,जब बुद्ध ने इस बात को देखा कि जो वो बतलाते,उसके मानने वाले,सही तरह से उस बात का पालन करने की कोशिश, करते है या उन्हें मदत की जरूरत पड़ती हैं, तब संघ को उन्होंने बनाया, फिर जो बताया वह धर्म बना। (यंहा धन शब्द का प्रयोग उचित किया गया है, क्योंकि, धन की आवश्यकता संघ को चलाने के लिये भी होती हैं बिल्कुल वैसे ही जैसे, किसी राज्य,व्यक्ति,देश,या फिर एक सामान्य परिवार में,) मल्लिका जैन😃

बुद्ध और भगवान

ऐसा कहते है (मैने सुना और पढ़ा है)भगवान भी बुद्ध  की शरण में खड़े हो जाते थे,ऐसी एक घटना और कथा है,एक बहुत महंगे कपड़े बेचने वाला व्यापारी जब बुद्ध के,पास गया तो,बुद्ध के प्रवचन पूर्ण हो जाने पर भी वह  वनहा रुका रहा और कुछ वस्त्रों को उपहार स्वरूप बुद्ध को अर्पित किया,तब आगे यह व्यापारी भी यह कहते हुए वहा से निकला"मैने तुम्हे जीत लिया",तो लोगो ने पूछा क्या जीत लिया,तुमने उस व्यापारी ने जवाब दिया, "मन" इतनी खूबसूरत बात को वह व्यापारी कुछ ही समय में बुद्ध के पास जाने पर कैसे समझ गया,जबकि बाकी के उनके संघ के भिखू ओ ने नहीं कहीं, तो अब सवाल यह उठता है कि क्या यह समुदाय जो इतने समय से बुद्ध के साथ चले,उन्हें क्या मन का पता नहीं था,या फिर व्यापारी क्योंकि लम्बे समय से एक ऐसी व्यवस्था में चल रहा था जो,व्यापार की समझ रखती थी,वो "लकीर का फकीर"नहीं था इसलिए गृहस्थ होते हुए भी "मन"जैसे जटिल विषय को समझ गया, हां सवाल तो कई है फिर भी, मन एक अत्यंत ही जटिल विषय आज तक इसलिए  है क्योंकि,इस पर जीत हासिल करना आसान तब ही हो सकता हैं,जब आपके पास बुद्ध जैसा कोई हो,क्

🌞 नींद🌝

व्यक्ति की नींद, गहरी आस्था में जब होती हैं,जब वह स्वयं किन्हीं कारणों से स्वयं को युवा जैसा बनाएं रखें, जैसे उस सम्बंधित व्यक्ति की इच्छित, क्रिएटिविटी, जो किसी भी क्षेत्र में जो सकती हैं,यह स्वास्थ्य का महत्वपूर्ण उद्देश्य है,बुद्ध के अनुसार,(जिसे कई वैज्ञानिकों और डॉक्टरों द्वारा समय समय पर प्रूफ किया जा चुका है)जब कोई व्यक्ति अपने इच्छित कार्य में लगा याने की पूर्ण रूप से संबंधित कार्य को करने की प्रक्रिया में संलग्न रहता है तो, उसे आवश्यक शारीरिक और दिमागी रूप से स्वास्थ्य प्राप्त हो जाता हैं,इस कथा को बुद्ध ने एक इस्त्री के कार्य में,संलग्न रहने पर निरोगी हो जाने वाली बात से स्पष्ट किया है, तो ऐसे व्यक्ति जो किन्हीं कारणों से अनिद्रा  को लेकर परेशान है,वे सबसे पहले इसे स्वीकार करें की उनके स्वयं के उतपन्न कारणों के कारण ऐसा है, दूसरा जन्ह तक हो सके,स्वयं को उन्माद से बचाए,अपने  पारिवारिक मित्रो से(विश्वशनीय) से बात चीत,और यथा सम्भव समान्य जीवन, इसे ही बुद्ध ने मध्यम मार्ग की श्रेणी में रखा है 🌝  मल्लिका जैन 💐 अस्तु

🌄दिन और रात🌌

मै अक्सर एक उदाहरण देती हूं,अपने मित्रों को,की दिन और रात दोनों साथ ही चलते हैं,इस को ही देखते हैं बुद्ध ने केसे बताया है, बुद्ध ने अपने सभी संघ में में ये विशेष बात कही थी कि आप भिक्षा,मांगने के बाद जब आयेंगे तब शेयर करेंगे,ही यह भी की,रात होने से पहले ही भोजन कर लेंगे,इसका साइंटिफिक कारण ये था,की उस समय,रात में जब चले तो जीव जंतु मर सकते थे,साथ ही मानव शरीर इतना चलने के बाद जो भोजन ग्रहण करता वो प्रोपर डाइजेस्ट हो जाएं और बॉडी क्लॉक प्रॉपर चलती रहे वो डिस्टर्ब न हो,क्योंकि जब बॉडी का बायो केलकुलेशन डिस्टर्ब होता है तो,न सिर्फ उस व्यक्ति पर, बल्कि संबंधित लोगो पर भी इसका फर्क पड़ता है, ये बिल्कुल प्रथ्वी सूर्य और चंद्रमा के साथ चलने जैसा उस समय बनाया गया था। मल्लिका जैन अस्तु👍🤗

व्यवहार और समाज

वैरी फर्स्ट, समाज का मतलब क्या है?सभी जानते हैं, जिसमे हम रहते हैं तो,क्या हम इससे सामंजस्य स्थापित कर पाते हैं? या फिर किसी अपने ही दायरे में सिमट जाते हैं,ज्यादातर ऐसा ही होता है,व्यक्ति उस दायरे में सिमट जाते हैं जो उनके व्यवहार में और उस समय में समाज में चल रहा होता है, तो यदि कोई ऐसा हो जो इस व्यवस्था से आगे हो तो इसका मतलब स्पष्ट है कि समाज उस व्यक्ति के अस्तित्व से इंकार करेगा या फिर यदि वह सफल है तो,उस व्यक्ति से इतनी एक्सपेक्टेशन रखेगा, जिसकी उस संबंधित व्यक्ति को कोई जरूरत नहीं होती,अब वह व्यक्ति क्या करें की उसकी लाइफ में इन सब का प्रभाव सामान्य हो जाए,?क्योंकि, संबंधित व्यक्ति की अलग अपनी खुद कि एक्सपेक्टेशन भी है जो उस समय से बेहद आगे कि है,तो यहां पर ऐसी कल्पनाओं का जन्म होता है जो कि किस प्रकार इस समाज और उस व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करती हैं, जो उसके वास्तविक जीवन में फोर्स का कार्य करती हैं ये व्यक्ति,यदि इतना सब समझ लेता है,तो जब भी, कोई कार्य करेगा,उसमे उसके वे सहायक या तो शामिल हो जाएंगे जो उस व्यक्ति के प्रति ईमानदार हैं,और जो नहीं है, वे साथ छोड़ देंगे,इस तरह से

😈अस्तित्व 👥

अपने ही अंदर के,मन के साथ,जीना सभी को होता है, शायद ही ऐसा कोई होगा,जो अपनी हकीकत किसी को वैसी ही बता पाए,पर क्यो? क्योंकि, कुछ सत्य ऐसे भी होते हैं,जिनसे वह व्यक्ति खुद भी परिचित नहीं होता,अब यदि कोई सम्पूर्ण रूप से परिचित हो भी जाए तो क्या वह कह सकता या कह सकती हैं वह ही सब कुछ जानता है? यदि ऐसा किसी भी के साथ हुआ तो इसका मतलब हुआ की उस सम्बन्धित व्यक्ति ने,अपने दिमाग पर काबू पाना सीख लिया है, और इसी सभी बाते जो एक सामान्य मनुष्य के लिए संभव नहीं है,वो वह सब जान गया या गई है,अब, यहां सवाल ये उठता है कि अब वो खुद क्या करें?क्योंकि यह स्टेज ऐसी हैं, जंहा,अस्तित्व खत्म मतलब अब सिर्फ दिखावा बचा हैं, क्योंकि जिसने सब जाना वो केवल उसको ही यह समझा सकता हैं कि, "देखो यार ये मेरी कुछ समस्याएं है क्या अब तुम कुछ कर सकते हो,या फिर ये की चल आज कुछ नया करते हैं" तो जिसे हम अस्तित्व के नाम से जानते हैं वो यह है, जब हमारा वजूद खत्म हो जाता हैं,हम जानते हैं कि ऐसा ही गया और दूसरो को लगता है,वो इस अब जानने वाले से बेहतर है,अब जब कोई इस भी ऐसा होता है तो तब भी अपनी ही तरह से जीता है,और बावजू

अग्नि परीक्षा 🔥

वैसे तो ज्यादातर व्यक्ति बुद्ध के ही बारे में लिखते हैं, पर कोई ये समझा शायद या फिर, किसी ने इस बारे में लिखा हो तो मैने पढ़ा नहीं, "अक्सर उनकी पत्नी उनकी राह देखा,करती थी, पर उन्हें कोई ख़बर मिलती तो किसी तरह से खुद को समझा लेती थी, यहां पर कभी भी किसी ने उन इस्त्रियो की बात नहीं की जिनके साथ बुद्ध राज महल में, लम्बे समय तक रहे,तो क्या कोई विश्वाश के साथ कह सकता हैं,की उनका केवल एक ही पुत्र था,या उनकी कोई बेटी भी थीं,नहीं,क्योंकि उन लोगो के बारे में जानकारी दी ही नहीं गई,बावजूद इसके कि बुद्ध ने बुद्ध बनने की प्रक्रिया के दौरान उन सबके लिए कुछ न कुछ किया," यदि कोई धर्म के नज़रिए से मेरी ब्लॉग को पड़ेगा तो शायद , नाराज़ हो सकते हैं फिर भी सच यही है कि इस समय बुद्ध का सिर्फ एक बेटा नहीं था,बल्कि वो भी अधिकारी थे जिनको उनके याने की बुद्ध के पिता,ने बुद्ध के पास रखा था,और बुद्ध ने उतनी छोटी उम्र में ही सभी के कर्ज चुका दिए थे, कैसे? इसका सबूत मै न दे सकती हूं और न ही देना चाहती हूं,सिर्फ इतना ही कह सकती हूं बुद्ध ने किसी को अप्सरा,किसी को दुर्गा,किसी को काली,और किसी को सरस्वती के

मैटर ऑफ सर्वाइवल

अक्सर ये समझ में नहीं आता कि हम जो तकलीफ़ उठा रहे, हैं वो वास्तव में हमारी है या दूसरों की,कुछ लोगो, आदतन ऐसे ही होते हैं,जो दूसरो की तकलीफ़ खुद लेे  लेते हैं,क्या कहें इन्हीं व्यक्तियों से ये संसार चलता है, क्या कभी आपने सोचा है कि क्यो,इंसान ही दूसरो कि सहायता करते हैं?यदि आप ऐसा सोचते हैं तो ये भी अच्छा है,पर ये समझ में ज्यादातर आता है कि जानवर  भी ऐसे ही होते हैं,वो भी एक दूसरे की सहायता करते हैं, जबकि इंसान कई समय खुद के हित के,इन्हे उपयोग करते हैं,वहीं कुछ इंसान अपना पूरा जीवन ही वाइल्ड लाइफ में बीता देते हैं,तो क्या,दर्द हो सुख का रास्ता है? या फिर सुख दर्द को मिटा कर जीवन को स्वीकार करता है,ये एक ऐसा सच है जो,ये साबित खुद ही करता है कि हमारा वातावरण हम पर असर डाल रहा है, क्योंकि हम परिस्थिति के अनुसार ही कार्य प्रणाली को समझ रहे हैं, इस सब के बीच,मुस्कुराहट और तकलीफ़ दोनों महत्वपर्ण हैं,मुस्कुराहट शरीर में ऐसे हार्मोन को उत्पन्न करती हैं,जो जीवन के लिए जरूरी है, हां ये जरूरी है कि मुस्कुराहट नकली न हो,जबकि दर्द हमेशा असली ही होता है,आजकल लोग दोनों ही क्रिएट कर लेते हैं,तो सम्पू

मीनिंग ऑफ ऐज इन धर्म

कई बार हम सोचते हैं, ऐज सिर्फ वही है,जो हम अपने जन्म से लेे कर अब तक,की उम्र को ही वास्तविक उम्र समझते हैं,और सही भी है क्योंकि हम सिर्फ उतना ही जानते हैं, कभी किसी ने अपने शरीर का डॉक्टर  मसल्स और बोन का टेस्ट करवाया हो तो पाएंगे,की वास्तविक उम्र,और शरीर के अंगो की उम्र में क्या अंतर होता है,इसे हम ऐसा समझें कि किसी उपकरण की मदत से हम खुद को समझ ने कि कोशिश कर रहे हैं, तो समझ में आने वाली बात ये है कि इस सब का धर्म से क्या संबंध है? धर्म भी ऐसे ही चलता है,चाहे वो किसी भी समुदाय के लोगो द्वारा पालन किया जा रहा हो,प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छाओं के साथ धर्म में परिर्वतन होता है,बिल्कुल वैसे ही जैसे शरीर में परिवर्तन हो रहा है,यदि व्यक्ति ज्यादा प्रभाव शाली है तो वो उसका उपयोग कर,बाकी लोगो से आगे होता है,जैसे ओहदे में,या किसी अन्य क्षेत्र में,जो उसका इच्छित होता है, "जब कोई व्यक्ति बिना किसी डॉक्टर के इस बात को समझ ने सफल हो जाता हैं तो उसे हम धर्म की भाषा में वह व्यक्ति किसी विशेष िइस्थीती में होता है" यह है उम्र के बारे में जानकारी इसमें हम अक्सर जब ये अच्छी तरह से जान जाए कि क