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🌨️क्रोध 🔥

अक्सर क्रोध तकलीफ का कारण बनता हैं,फिर भी, सकारात्मक दिशा में हो तो,सही रास्ता दिखा सकता हैं, ज़िन्दगी अक्सर तकलीफ ही देती हैं,विशेष रूप से,जब हमे पता हो कि हम खुद सिर्फ किन्हीकारणों से इसमें घिरे हुए हैं,अब यहां समस्या यह है कि,प्रत्येक बात जों भी कहते है वह, कही शांत या क्रोधित कैसे हो सकती हैं, जैसे कि कुछ लोग मिल कर कोई जश्न मना रहे होते है,तब, किसी विशेष की उपस्थिति किसी से निकलने वाले क्रोध को अलग दिशा दे देती हैं,तब क्रोध ही शांत  रूप ले लेता,और जब वह व्यक्ति न हो तो क्रोध नुक़सान करता है,अब मानव शरीर में इन मानसिकताओं को उत्पत्ति के समय है डाल दिया जाता हैं, तो जिस जगह रहने वाले परिवार क्रोधित होंगे तब उत्पन्न भी क्रोध होता हैं,इसी बीच जब शांत वातावरण होता हैं,तब शान्ति होती हैं, तो क्रोध और शांति एक दूसरे के साथ होते है,मतलब विपरीत परिस्थिति साथ होती हैं तब भी जीवन और मृत्यु क्रोध और शांति की तरह निर्वाह करते है,😓 मल्लिका जैन

प्यार शान्ति और देखभाल

ये बात एक छोटी सी, घटना से समझ ते हैं, इन्सान हो या फिर इन्सानों के साथ रहने वाले जानवर या फिर जंगलों में रहने वाले जानवर,ये सब अपने अपने परिवार का ख्याल रखते हैं,इनमें सिर्फ इन्सान ही ऐसा होता हैं,जों,बड़े होने तक अपने साथ रहने वालो का ध्यान रख सकता हैं,जबकि जानवर अपने बच्चो को बड़ा होते ही उनके भावी जीवन के लिए तैयार कर उनसे दूर हो जाते है,यह डिटैचमेंट के साथ ही पुनः अटेचमेंट है, जबकि मनुष्य, अपने क्रोध,प्यार और देखभाल से, घर,समाज, और वातावरण का निर्माण करते है,  यहां बुद्ध इस बात को समझ और जान गए थे कि जीवन मे इस चक्र से बाहर निकल कर पुनः वह ही शुरु हो जाता हैं, इसलिए वे सब को प्रेरित तो करते थे,मगर, चलना, उस व्यक्ति को स्वयं ही होता हैं यह ही समझाते थे,अब कोई यदि इसे बीमार हुआ तो बुद्ध ने दावा दी, उनकी दावा व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक इस्थीती को समझ कर होती थी मल्लिका जैन 💐

नया और पुराना

कितनी बार ही इतिहास उठा कर देखा गया, हर बार बुद्ध को सत्य ही पाया, चाहे विज्ञान की बात हो या धर्म की, बुद्ध ने,तर्क हीन कभी भी कुछ नहीं कहा,ऐसा नहीं  की आज कोई इन बातों को नहीं समझता,फिर भी,जब बुद्ध ने नमो तस्य भगवतो अरहतो कहा तो उन्होंने,इस बात को न सिर्फ शब्दों में कहा बल्कि उसे उस उस दशा मे अपने जीवन काल में जिया भी,अब कोई व्यक्ति,अपने स्वार्थ हित मे बुद्ध को किसी भी धर्म से अलग कहते है, वे शायद यह समझ नहीं पाए या इसका अर्थ अपनी समझ के अनुसार लगाया,आज भी यह उतना ही सत्य है जितना उस समय रहा होगा,मनुष्य,देवी देवता,या स्पिरिट,या अन्य किसी को भी बुद्ध ने अपने पास आने से नहीं रोका लेकिन यह अधिकार किसी को नहीं दिया कि वे बुद्ध पर शासन करे,शाशक बुद्ध स्वयं ही रहे, रही बात अन्य की तो नियम को कोई माने अथवा नहीं, मार्ग उसे बने बनाए मिल जाते है,फिर भी,उन मार्गो पर चलना स्वयं ही होता हैं,💐 मल्लिका जैन