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🕯️उत्सव💡

उत्सव,जब कोई खुद को समझ कर अपने ही जीवन को उत्सव मय बना ले, हम खुद को कैसे समझते सकते है जब किसी के जीवन मे यह ज्ञात हो जाए कि जिसने उन्नति को प्राप्त कर लिया है वो किसी और अपनी उन्नति देना नही चाहता, पर यँहा उन्नति स्वयं के द्वारा आवश्यक होती हैं, जब किसी की सहायता से,कुछ प्राप्त हो और वह यह बार बार बताए कि मैने आपकी सहायता की है तब उत्सव घटित होने हर बार समय लग जाता हैं, यहां देने वाले कि इच्छा सामने या अनजाने में प्रकट होती हैं तब उत्सव घट नही पाते तब वे पूर्णता की कसौटी पर खरे है या नही इस बात अनुमान मात्रा लगाने में समय को लगा देते है, फिर उत्सव कैसे मनाया जाए उत्सव,साहस समझ शांति और धन का प्रतीक हैं, तन,मन,धन,और इन सब को मिला कर धन, क्योकि अधिकार तब बनता हैं जब स्वयं समर्थ बने, कैसे बनोगे पैदा होने से लेकर पूरे जीवन मे और फिर मृत्यु में भी किसी न किसी की जान कर या अनजाने में सहायता मिलती ही है, तो जब हम मित्र वत व्यवहार को समझ लेते है, और क्रोध या नफरत या अन्य ऐसे प्रवृति जो हमे ऐसे पल में रखती हैं जब हम इन पर सामंजस्य स्थापित करते है तब इसे, उत्सव कहते है, यह जान लेते है कि दूसर

🍋तारा और बुद्ध🍊

बुद्ध और तारा एक दूसरे के सहयोगी है जब भी जंहा भी बुध्द होते है तारा होती हैं, ये दोनों  जब भी उपस्थित होते है,ऐसा कोई भी कार्य जो असम्बभव प्रतीत होता हैं, वह कुछ ही पलों में संपन्न हो जाता हैं यह यथार्थ में सत्य है, बात यह है कि क्या कोई इतना समर्थ वान है जो उस स्तर पर पहुंच सके क्योकि उस सम्बंधित व्यक्ति का उतना समर्थ वान होना आवश्यक है, नही तो सिर्फ एक शिकायत रह जायेगी की मेरे पूजन के उपरान्त भी कार्य सम्पन्न नही हुआ, यह अत्यंत ही संवेदनशील और उच्च स्तर पर संभव होता हैं कुछ ही पलों में रास्ते खुलते हैं और बंद हो जाते है, 😀 😁ॐ तारे😀😁 😁मल्लिका जैन😁

😀नियामत😁

ब्लिस या नियामत इसे समझ ना और तथाकथित किंवदंतियों को समझ कर जो पसंद या उचित नही उसे अलग कर देना और सही बात को स्वीकार कर लेना ये भी अक्सर ऐसे लोगो का खिलौना बन जाता हैं जो इस बात से सहमत हो कर भी सहमत नही होते,मतलब की  वे किन्ही बातों को बोलना ही नही चाहेगे तो अब ब्लिस कैसे प्रप्त हो, क्या दवाई क्या दुआ या फिर स्वयं मृतयू या फिर जन्म या विवाह प्रस्ताव सभी के पास होते है  कोई किसी को स्वीकार करता है और कोई किसी को फिर भी पुनः प्रयास जारी रहते है किसी उचित स्थान पर पहुंच ने बाद भी  😁 😁 मल्लिका सिंह💎

😁वक्त की बात😁

बुद्ध समय मे जा सकते और समय के साथ किन्ही में परिवर्तन कर सकने में समर्थ होते है यह सच है पर क्यो यह करना चाईए यह विचार योग्य प्रश्न है, यँहा व्यवस्था का मतलब और समय का मतलब सिर्फ बात को साबित करना नही होता, क्योकि जो लोग किसी को दिया हुआ वापस ही नही करना चाहते तब क्या किया जाए तब परिवर्तन करना पड़ता हैं, पर जब यह समझ के आ जाये कि विवाद का कारण यह नही की सत्य क्या है, बल्कि यह है कि जिन्हें दया या भूल वश कुछ मिल गया था वे ही अब उस प्राप्त को अपना समाझ ने लगे तो,क्या बुध्द इस तरह के विवाद से भी निपट सकने में समर्थ हैं तो जवाब हा है, पर जब कोई हर समय यह बताया करें कि दया और करुणा बस मूर्ख या ऐसे लोगो का अधिकार है जो कि स्वयं समर्थ नहीं तब,उन्हें बताने के लिए बुद्ध किसी को कुछ भी साबित किये बिना सिर्फ अपना कार्य कर देते है, औऱ जिन योग्य को अयोग्य साबित किया जाता हैं वह स्वयं ही साबित हो जाता हैं, यह न्याय व्यवस्था भी होती हैं  क्योकि व्यवस्था बना कर रखना है और नियम बनाना यह वे स्वयं कर सकते है जो समर्थ होते है इसका मतलब यह नही की जिन लोगों ने कुछ भी किया हो वे उस के अधिकारी हो गए है😀😁 😁

😃समस्याओं का अंत😁

हर दिन विचार करते है कि समस्याए का निराकरण कैसे हो सकता हैं, पर कही न कही कुछ ऐसा होता हैं जो विचार,व्यवहार और व्यवस्था में सुधार के साथ चलता है जिनका व्यवस्था आवश्यक होती हैं जिनमे सुधार की जरूरत होती हैं, पर कोई उन्हें करना नही चाहते ,किसी का कुछ और किसी का कुछ जिस कारण से एक ऐसा तारतम्य व्यवस्थित होता हैं जो सदैव ही सुधार की इस्थित में होता हैं, जिन्हें सुधारना ही होता हैं, पर बात यँहा पर रुकी होती हैं कि उत्तरदायित्व कौन उठायेगा, सहायता किसे मिलनी चाहिये और किसे नही यह भी विचारणीय प्रश्न बन जाता हैं ऐसे सवाल और जवाब की तरह जो कभी तो सदैव ही सवाल होते है और जो कभी ऐसे सवाल जिनके उत्तर सामने ही होते है पर समझ और उपयोग में लाना आसान कैसे बने इस बात पर रुके होते है, जब बात बुध्द की हो तो वे सदैव ही ऐसी  व्यवस्था के साथ चले जो किसी पर लादी न जाये बल्कि व्यवहार में और प्रयोग और उपयोग में आसन हो मतलब जिसे किसी उत्तरदायी व्यक्ति से करवाया जाए और उचित को उसका लाभ प्रप्त हो सके। 😀मल्लिका singh har din vichaar karate hai ki samasyae ka niraakaran kaise ho sakata hain, par kahee na kahee kuch

😂स्वयं की इच्छा😂

ज्यादातर समय मनुष्य जब आगे बढ़ने लगता हैं तो उसे कोई जो भी योग्य नही है, वह  रटा हुआ एक राग अलापते है जिसे प्रेम का नाम दिया जाता हैं और जिन्हें कुछ भी नहीं आता वो खुद को इस अंकेन्डिशन लव की आड़ लेकर स्वयं को उस से बेहतर बताते है जो वो खुद नही होते,अब प्रश्न यह उठता है कि क्या जो जीव को यह समझ मे नही आता कि यह संबंधित व्यक्ति क्या चाहता है, आता हैं पर जो लोग किसी दूसरे पर इस तरह से अतिक्रमण करते है वे ही स्वयं को योग्य साबित करते है जबकि होते नही,जीवन के रहस्य आसानी से हर किसी को नही मिलते इसके परिणाम स्वरूप कही क्रोध का जन्म हो सकता हैं या फिर अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लग जाता हैं तो जब कोई जवाब नही मिलता हैं क्या किया जाये और जिनको इस बात का अहसाह भी नही की मर्यादा क्या होती हैं वे निश्चित ही किसी न किसी तरह की तकलीफ तो उठाये गे ही,जो दूसरों की शक्तियों को स्वयं लेते है बिन उसकी मर्जी के ऐसे लोग ही युद्ध को निमंत्रण देते है,जिन्हें ये लगता हैं कि वह व्यक्ति जो ठीक है और अपनी सुरक्षा करना जनता है वे उसे बार बार तंग करते है ये जीव माफी के काबिल नही होते, ये सिर्फ स्वार्थी होते है, बुद्

😁कार्य😀

 शुभकामनाएं बुद्ध के जन्म, ज्ञान निर्वाण दिवस की कार्य तो करना ही होता हैं, पर उसके परिणाम पर भी विचार करना होता हैं, बुध्द ने क्या कभी कार्य किये होंगे, तो जवाब हा में ही है, बुद्ध स्वयं के तरह से कार्य करते और करवाते भी थे,जब कोई उनकी बातों को सुनता तो वे उसे अपने को उस स्तर को समझ कर बताते थे इसलिए उस सम्बंधित व्यक्ति या भगवान या अन्य के कार्य होते थे, यह सच आज भी उतना ही सत्य और सटीक है। 😀मल्लिका सिंह😁

😁यात्री और यात्रा😁

समय एक ऐसा परिणाम है जो अनन्त है,पर कई ऐसे के प्रमाण मिले हैं जिसमे यह पता चला है कि इससे परे भी जाया जा सकता हैं, विश्वास करना अच्छा है पर अंध विश्वास उचित नही,जो खुद को किसी का दास बना दे ऐसी व्यवस्था ही अक्सर चलती हैं, इसका उदाहरण यह है कि आप किसी न किसी की व्यवस्था के अनुसार चलते हैं जो या तो स्वीकार होती या नही,जो ये व्यवस्था बनाते है वे खुद भी इसी व्यवस्था से आगे निकल आते है फिर जब कोई अपने नियम या निर्णय स्वयं करता है तो स्वयम ही अपने कार्यो के लिए उत्तरदायी बन जाता हैं,पर क्या वास्तव में ऐसा होता हैं, यह कोई जान नही पता और जो जानते है वे इसका कोई सही हल नही बताते, क्योकि वे लगातार ऐसी प्रक्रिया का निर्माण करते है जो पुनः पुनः किसी निर्धारित कार्यवाही की तरफ ले जाती हैं तब, परिणाम मन मुताबिक न हो तो इसे स्वीकार नही किया जा सकता,और व्यक्ति पुनः अपने प्रयासों में लग जाते है यह प्रक्रिया हर बार समय और परिश्रम दोनो ही लेती हैं साथ ही उसमे लगने वाला प्रयास के वंचित परिणाम पर भी प्रभाव डालती हैं 😁मल्लिका सिंह😁

😂धोखा😃

धोखा किसी को भी दिया जा सकता हैं, लेकिन किस को ये लगता है कि उसे धोखा मिल रहा है, क्या आद्यात्मिक शक्ति भी कोई ले सकता हैं तो जवाब है हां यह सदियों से होता आ रहा है, जब कोई भी जो खुद समर्थ वान नही है, वह किसी की शक्तियों को ले लेते है कैसे एक तो सीधे चोरी आदि कर के या फिर जो किसी प्रकार यह बात समझ लेते है कि वे किसी को चीट कर सकते है और लगातार चीट करते है, दूसरा जब कोई किसी से प्रार्थना करता है तो क्या होता हैं, इन प्रार्थना के फलस्वरूप उसे भेंट में क्या चढ़ा न होता हैं, उस संबंधित अधिकारी प्रयोग किये जाने वाले प्रयास जो कि उस चाहे गए कार्य के उच्चतम परिणाम तक नही पहुंच पाते,तब ऐसे लोगो जो स्वयं को उच्च बनाए  रखना चाहते है तो शक्ति क्या होती हैं पहले इस बात को अच्छी तरह से समझ लेते है यह सिर्फ निर्विवाद रूप से उसकी होती हैं जो इसे प्राप्त करता है लेकिन जब किन्ही वजह से वह समझ नही पाते कि हो क्या रहा है तब क्या होता हैं,तब आसानी उसके द्वारा किसी को इनका हस्तांतरण हो जाता हैं,ये ऐसा कु छ भी नही जो किसी को कोई दे सके या ले सके, ये सिर्फ इतना ही है कि प्रयोग करता स्वयम कितना सम्भवतः समझ रहा

🎆आनन्त ✨

😀अन्नत क्या इसे जाना और समझा जा सकता हैं, क्या इसका अपना कोई समय या स्थान होता हैं क्या इसे किसी की जरूरत है क्या है ये, ये सवाल किस के मन मे उठते रहे है और कौन इसके जवाब मांग रहा है? इतने सारे सवाल जो निरुत्तर से है वे अनन्त से पूछ रहे मालूम होते है तो,सच अक्सर कड़वा होता हैं जिसे जब समझ ही नही आ रहा तो क्या जवाब दे😁आश्चर्य इस बात पर है कि सदियों के पसरे पड़े तमाम निरुत्तर कहि तो जाएंगे ही,जवाब वही अन्नत और सवाल वही अन्नत तो आज अन्नत से अन्नत के सवाल जवाब, आज यँहा किसी जीवित या मृत के प्रश्न नही है, ये प्रश्न वास्तव में अन्नत के जो सिर्फ अपनी विभिन्न वृहद व्यवस्था से गुज़र चूका है और किसी वृहद व्यवस्था से गहन विचार से पुनः प्रवेश करता है, इसके पास स्वतः का कोई कार्य नही फिरभी अस्तित्व तो है, तब कैसे इसका निराकरण हो, इस अन्नत को फिर से कोई अनन्त बनाना है, तो निर्माण पुनः व्यवस्थित नही होगा, क्योकि ये ऐसे ही रहता हैं, पर इसके साथ ही जब ये बाकी से परे है तो भी अपनी व्यवस्था बना लेते है, जिन्हें हम लोग खगोल आदि से समझ ने कोशिश करते है पर ये अन्नत सर्व उपलब्ध नही हो सकता और कोई यँहा जाना नह

😁विश्वास🤔

विश्वास, किस पर किया जाए क्या किया जा सकता हैं और क्यो,विश्वास एक नाजूक और अत्यंत संवेदनशील  भावना है जो मुश्किल से प्राप्त होती हैं, जैसे प्रार्थना करने वाले को पता होता हैं कि वह, संबंधित अधिकार के लिए अपील संबंधित देवी या देवता या अन्य की विशेष से करता है तो उसका परिणाम उसे प्राप्त होता है,क्या होता हैं जब प्रार्थना अनसुनी रह जाए और हर बार सालो तक करने पर भी जवाब न मिले,तब विश्वास डगमगाने लगता हैं, और प्रार्थना करने वाले को लगने लगता हैं, जिससे वे प्रार्थना कर रहे है वह है ही क्योकि इतने समय तक तकलीफ़ तो वह भोग ही चुका, इस बात को कैसे समझा जाए,यह एक जटिल प्रश्न है जिसका जवाब भुक्तभोगी अत्यंत तीव्र तकलीफ के कारण कष्टमय मन से सहता है,तब कही न कही मन मे शत्रुता भाव भी पैदा हो जाता है यह होता विश्वास का परिणाम, और जब यही बात समस्याओं के निराकरण पर लागू होती हैं तब विश्वास प्रबलता से और गहरा हो जाता हैं, यह दोनों प्रक्रिया 2 तीव्र संवेदना व्यक्त करती हैं यह सम्मान और अपमान दोनो ही इसके परिणाम में आते है लेकिन सम्मान सुख दायक और अपमान दुःख दायक होता हैं, जिसमे किये गए समस्त प्रयास शामिल हो

🤔हरफनमौला🤗

क्या है जो बुध्द को पता चल गया था, शायद हरफनमौला जैसा कुछ मतलब उस समय मे बुध्द वह सब जान गए थे,जो आज के लोग या अधिकृत वर्ग समझ मे आने और जानने की कोशिश करता है यँहा मेरा मतलब वह प्रयोग और उनकी शरीर से संबंधित  सारी जानकारी जो किसी को यूनिवर्स से जोड़ती है जैसें जब कोई ध्यान या शरीर को अत्यधिक कष्ट दे कर तपस्या से प्राप्त करता है तो वह जो प्राप्त करते है वह किसे बताने और समझने योग्य हैं और किसे नही, यँहा उस समय मे भी ऐसे कई तरह के व्यक्ति रहे होंगे जो अमूमन अपनी ही बात करते रहे होंगे,और उसे साबित करने के वृहद प्रयोग,तो यह सिर्फ बुध्द ही कर पाते थे क्योकि वे पर्यावरण जो पृथ्वी पर है, जो इस पृथ्वी के बाहर याने जिसे हम बियॉन्ड कहते है उसे जान गए थे  विचार मंडल का महत्व और इस संसार मे जब प्रवाह उन्मुक्त हो जाते है तो इसका अर्थ क्या होता हैं, यह सब बुध्द समझ गए थे साथ ही क्योकि पृत्वी पर उतपन्न होने के कारण शरीर की विवशता से वे परे हो गए थे,उसे जान और समझ कर सब को नही बताते, क्योकि यह वास्तव में अन्य का विषय था ही नहीं।🤔 😊मल्लिका जैन😀

😂दर्द और निवारण😀

दुःख को परिभाषित करना मुश्किल नही है, फिर भी किसी की तकलीफ को कोई दूसरा ले नही सकता सिर्फ कोशिश करते है कम करने की, सहायता प्रदान करके पर जब किसी की सहायता भी दुःख को कम न कर सके तो यह समझ न पड़ता हैं कि सुख क्या है, यँहा भी वही  बात लागू होती हैं, कैसे सुख की अभिव्यक्ति होती हैं, यँहा सब के अपने तरीके हैं पर कोशिश रुकती नही वह चलती ही रहती हैं लगातार, दोनो तरफ से, यँहा सिर्फ सोच में परिवर्तन के साथ प्रयास में आवश्यक सामग्री भी निहित होती हैं 😊मल्लिका जैन🙏

🤔मीनिंग ऑफ ब्लीस😁

तथागत, नो वेरी वेल व्हाट इस कोस्ट ऑफ पीस एंड ब्लीस,  Today केसे किसी को चोट पहुच ए बिना क्या मानव सभयता या जीव जंतुओं को सम्हाल जा सकता है हा हो सकता हैं जब बाकी लोग भी, आर्गेनिक तत्वों का प्रयोग कर अपने को आगे बढ़ने की कोशिश करें, क्या कभी कोई धर्म स्वयं को बिना चोट पहुचाए या किसी के खाद्यान्न को न लिए बिना याने जब कोई देता हैं अपनी स्वयं की सहमति से तब क्या होता हैं स्वाभाविक रूप से जब यह होता हैं तो वे लोग जिन्हें जिम्मेदारी लेना पसंद नही वे क्या करते है, वे दूसरों से किस तरह मदत लेते है यह सिख कर पुनः उसे दोहराते है,और फिर पुनः अपने स्वार्थ में लग जाते है, यह ब्लीस को अलग ही रूप दे देता हैं।, इसलिए फिर कोई लोग शक्ति का प्रयोग करते है, यह भी ब्लीस को अलग ही रूप दे देता हैं, जिसे लोगो द्वारा समझा ही नही जा सकता। फिर भी यथा सम्भव  ऑर्गेनिक तत्वों का प्रयोग अच्छा है,यह उन जरूरतों को पूरा करता है जो उम्दा तरह से बनती हैं Tathagata, No Very Well What Is Coast Of Peace And Bliss, Today, how can human civilization or animals be taken care of without hurting anyone, maybe when other people

🙄सोच और परिवर्तन🌾2

🤔तो अब जब यह समझ आने लगता हैं कि कैसे और कन्हा क्या सभव हो सकता हैं तब क्या किया जाए, तो पुनः दोहराती हूं ये बाते सामान्य को समझने में समय लगती हैं, क्योकि कोई भी एक ऐसे वातावरण को लम्बे समय तक बनाए रखे यह कठिन क्यो बन जाता हैं वो इसलिए कि समय मे परिवर्तन औऱ उसे ठीक बनाए रखना सम्भव है, फिर भी शांत व्यवस्था को बनाए रखने की अपनी ही नीतियां होती हैं, वो क्या होती हैं चलिए आज इसे देखते है🤗 1 अच्छे स्थान पर रहना 2शिक्षा और धन का समुचित उपयोग 3 बिना स्वयम की मर्जी के किसी को ये अधिकार नही      देना की वे आपको ही अपना उपभोग बनाने लगे 4 स्वास्थ्य पूर्ण मुस्कुराहट याने जो हंसी बनावटी न हो 5यँहा उच्च को ही स्थान प्राप्त होता हैं ये सब स्नेह औऱ   अधिकार विचारों का विकसित होना, उनके लिए     समुचित प्रयास स्थापित किए जाते है 6 तो ऐसा स्थान बनाए कंहा, क्योकि उपलब्ध संसाधन     जो बनाए जाते है वे स्वयं के लिए होते है उसका अधिकार किसी को तब तक नही जब तक सामने वाला योग्य हो। 7 अब यँहा अपना राग क्या होता हैं ये भी अक्सर किन्ही के द्वारा दोष का विषय हो सकता हैं मैने स्वयं बेहतर ही बनाया तो दोश विपरीत प्

😁मिनिग ऑफ अल्टीमेट ब्लिस😀

अल्टीमेट ब्लिस मन और शरीर के साथ दिमांग का समुचित उपयोग, अब सवाल उठता है कि ऐसी इस्थिति कब बनती हैं क्या किसी रटी हुई शब्दावली या मंत्र उच्चारण से या फिर स्वयं में समझ का विकास किसी सर्वश्रेष्ठ स्तर तक हो जाने पर, ये समझ सिर्फ स्वयं के विकास की इस्थिति सर्वश्रेष्ठ बन जाने पर ही बनती हैं, प्रकृति, और खुद में समझ का विकास कैसे उत्पन्न होता हैं, ये कई तरह की स्थिति और विचार क्रम और समस्याओं के समाधान के निराकरण स्वयं से प्रप्त कर लेने पर ही बनती हैं, किसी को हानि या लाभ पहुंचाने से नही,यँहा सिर्फ सर्वश्रेष्ठ को उचित सम्मान भी अक्सर वृतालप का विषय बन जाता हैं, क्योकि जब यह समझ आ जाए कि स्वयं कौन हैं तो फिर कई बातें लगभग स्पष्ट होने लगती हैं, ये इस्थिति एक हद तक तो ऐसी है जैसे  किसी को असीमानंद की प्राप्ति हो ये साधन अत्यंत उच्च स्तर के होते है जो किसी को समझ ऐ जा सके ऐसी उपलब्ध ता निश्चित ही उपयोगी होती हैं, यँहा पर विभिन्न तरह की बातें स्पष्ट होती हैं जैसे क्या कोई देवी देवता आपके सहयोग बनते है या आपको विभिन्न तरह के आनर्गल सच्चाई का सामना करना पड़ता हैं, जो इतनी अजीबोगरीब होती हैं कि उनका

🙄सोच और परिवर्तन🌾

😀बुद्ध एक ऐसा व्यक्तित्व जो लगभग सभी बातों को जानते और समझते थे, उन्होंने ये कभी नही चाह की कोई आगे चलकर उनकी बातों का गलत मतलब निकले लेकिन फिर भी समय ने बहुत से परिवर्तन किये, महावीर और बुध्द के चिंनतन में फर्क है जंहा बुद्ध ने कई तरह से जीवन की राह को समझ कर आगे के मार्ग को प्रशस्त किया, उसे यथा संभव शारीरिक पीड़ा से दूर रखा, उन्हें दवाओं का पूर्ण ज्ञान था, ऐसा नही की महावीर को नही था, उन्हें भी था, किन्तू महावीर ने कठिन मार्ग को पसंद किया, आश्चर्य इस बात पर की फिर भी लोगो ने स्वीकार किया, तब बुद्ध ने समझ को बेहतर बनाने के लिए बताया कि जीवन कठिन नही है, पर इसमे लोक लाज का अपना स्थान है जो सामान्य के लिए मायने रखता है, इससे ही संसार मे रहने योग्य उचित व्यवहार किये जाते है, यँहा बुद्ध और महावीर की कोई तकरार नही थी, क्योको सब कुछ समझ ने बाद ही कहा भगवतो अरहतो और सम्मासम बुधस्य, 😁 इस पर आगे और लिखेंगे 😄मल्लिका जैन😁

💞बुद्ध और प्रार्थना💤

💌अक्सर  ये समझ उत्पन्न होने में समय लग जाता हैं कि व्यक्ति या कोई समय क्यो किसी समस्या या दुःख या फिर सुख के साथ जीते हैं, यह हमेशा ही विशेष वर्ग का अधिकार रहा है, क्यो ? इसके जवाब देने में शायद इतना समय लग जाये कि सादिया बीत जाए फिर भी यह परस्पर वृतालाप का विषय ही बना रहेगा, क्या किसी की मृत्यु किसी के लिए सुख का कारण हो सकती हैं, या फिर कोई किसी की मृत्यु को कितने समय मे स्वयं या अपने लोगो को उबार सकते है, यह सिर्फ वह ही कर पाते है जो अपने कर्मो में सुधार करते है और प्रयास रत रहते है, तो जिसे हम वर्तमान समय कहते है यह कोविड क्या पहले से निर्धारित था, या नही यह तो पुनः परस्पर वृतलाप का विषय है, तो आज हम यह समझ ने की कोशिश करते है कि ये जो समय है यह किस प्रकार से उपयोगी हो सकता हैं, विभिन्न देशों के सहयोग से कई संशोधन के बाद वेक्सीन या दवाओं के उत्पादन हुए है कुछ लोग ठीक हुए और कुछ नही, बहुत सारी प्रार्थना  और तमाम प्रयास क्या सिर्फ प्रार्थना किसी को ठीक कर सकती हैं तो जवाब है नही क्योकि जब भी कोई किसी के लिए प्रार्थना करता है तो वह उसके लिए साधना अपने कहे गए शब्दों से प्राप्त कराने क

😁जीव यात्रा😂

किसी भी मनुष्य या जीव की अपनी यात्रा होती हैं जिसमे उसकी ज़िंदगी बित रही होती हैं कोई कहता है की कमी है और कोई कहता है सब अच्छा है, पर सत्य  सिर्फ कुछ समर्थ के पास होता हैं, तो अब किस अधिकार की बात कोई करता है,में ये समझ और जान कर हैरान हूं कि क्यो कोई उस शिखर पर पहुंच नही पता और कोई क्यो पहुंच जाता हैं, कितना भी प्रयास करें सत्य पर सदैव आवरण ही रहता हैं, क्योकि सत्य वास्तव में सहन नही होता, कोई कैसे देव या दानव बन जाता हैं, कितना ही प्रयास करें पूर्व के रास्ते कैसे दूर हो जाते है क्यो किसी की यात्रा अधूरी रह जाती हैं, ये अधिकार किसके पास है कि वो दिमांग को नियंत्रित कर सके जब कोई यह जान ही नही सका तो विवाद हम करते किससे है,  जब अपने ही जीवन का पता नही तो किसी और कि क्या बात करें खैर यह विवाद सामान्य के लिए नही है और जो इसके जवाबदेही है वो कभी भी न तो सामने आएंगे न ही जवाब देनंगे,। 😂मल्लिका सिंह😁