गाथा मनोपुब्बंगमा धम्मा,मनोसेट्टा मनोमया। मनसा चे पदुट्टen ,भासति वा करोति वा। ततो न दुःख मन्वेति चक्कं वा वहतो पदं।।1।। अर्थ- मन सभी प्रवर्तियों का प्रधान है। सभी धर्मं (अच्छा या बुरा) मन से ही उत्पन्न होते है। यदि कोई दुषित मन से कोई कर्म करता है तो उसका परिणाम दुःख ही होता है। दुःख उसका अनुसरण उसी प्रकार करता है जिस प्रकार बैलगाड़ी का पाहिया बैल के खुर के निशान का पीछा करता है। चक्षुपाल कि कथा स्थान : जेतवन श्रावस्ती मन से बड़ा कुछ नहीं एक दिन भिक्षु चक्षुपाल जेतवन विहार में बुद्ध को श्रद्धा सुमन अर्पित करने आया रात्रि में वह ध्यान साधना में लीन टहलता रहा। उसके पैर के नीचे कई कीड़े-मकोड़े दबकर मर गए। सुबह में कुछ अन्य भिक्षुगण वंहा आये और उन्होंने उन कीड़े-मकोड़ो को मारा हुआ पाया . उन्होंने बुद्ध को सूचित किया कि किस प्रकार चक्षुपाल ने रात्रि बेला में पाप कर्म किया था बुद्ध ने उन भिक्षुओ से पूछा की क्या उन्होंने चक्षुपाल को कोड़ो को मारते हुए देखा है जब उन्होंने नकारात्मक उत्तर दिया तब बुद्ध ने उनसे कहा कि जैसे उन्होंने चक्षुपाल को