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🌨️क्रोध 🔥

अक्सर क्रोध तकलीफ का कारण बनता हैं,फिर भी, सकारात्मक दिशा में हो तो,सही रास्ता दिखा सकता हैं, ज़िन्दगी अक्सर तकलीफ ही देती हैं,विशेष रूप से,जब हमे पता हो कि हम खुद सिर्फ किन्हीकारणों से इसमें घिरे हुए हैं,अब यहां समस्या यह है कि,प्रत्येक बात जों भी कहते है वह, कही शांत या क्रोधित कैसे हो सकती हैं, जैसे कि कुछ लोग मिल कर कोई जश्न मना रहे होते है,तब, किसी विशेष की उपस्थिति किसी से निकलने वाले क्रोध को अलग दिशा दे देती हैं,तब क्रोध ही शांत  रूप ले लेता,और जब वह व्यक्ति न हो तो क्रोध नुक़सान करता है,अब मानव शरीर में इन मानसिकताओं को उत्पत्ति के समय है डाल दिया जाता हैं, तो जिस जगह रहने वाले परिवार क्रोधित होंगे तब उत्पन्न भी क्रोध होता हैं,इसी बीच जब शांत वातावरण होता हैं,तब शान्ति होती हैं, तो क्रोध और शांति एक दूसरे के साथ होते है,मतलब विपरीत परिस्थिति साथ होती हैं तब भी जीवन और मृत्यु क्रोध और शांति की तरह निर्वाह करते है,😓 मल्लिका जैन

प्यार शान्ति और देखभाल

ये बात एक छोटी सी, घटना से समझ ते हैं, इन्सान हो या फिर इन्सानों के साथ रहने वाले जानवर या फिर जंगलों में रहने वाले जानवर,ये सब अपने अपने परिवार का ख्याल रखते हैं,इनमें सिर्फ इन्सान ही ऐसा होता हैं,जों,बड़े होने तक अपने साथ रहने वालो का ध्यान रख सकता हैं,जबकि जानवर अपने बच्चो को बड़ा होते ही उनके भावी जीवन के लिए तैयार कर उनसे दूर हो जाते है,यह डिटैचमेंट के साथ ही पुनः अटेचमेंट है, जबकि मनुष्य, अपने क्रोध,प्यार और देखभाल से, घर,समाज, और वातावरण का निर्माण करते है,  यहां बुद्ध इस बात को समझ और जान गए थे कि जीवन मे इस चक्र से बाहर निकल कर पुनः वह ही शुरु हो जाता हैं, इसलिए वे सब को प्रेरित तो करते थे,मगर, चलना, उस व्यक्ति को स्वयं ही होता हैं यह ही समझाते थे,अब कोई यदि इसे बीमार हुआ तो बुद्ध ने दावा दी, उनकी दावा व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक इस्थीती को समझ कर होती थी मल्लिका जैन 💐

नया और पुराना

कितनी बार ही इतिहास उठा कर देखा गया, हर बार बुद्ध को सत्य ही पाया, चाहे विज्ञान की बात हो या धर्म की, बुद्ध ने,तर्क हीन कभी भी कुछ नहीं कहा,ऐसा नहीं  की आज कोई इन बातों को नहीं समझता,फिर भी,जब बुद्ध ने नमो तस्य भगवतो अरहतो कहा तो उन्होंने,इस बात को न सिर्फ शब्दों में कहा बल्कि उसे उस उस दशा मे अपने जीवन काल में जिया भी,अब कोई व्यक्ति,अपने स्वार्थ हित मे बुद्ध को किसी भी धर्म से अलग कहते है, वे शायद यह समझ नहीं पाए या इसका अर्थ अपनी समझ के अनुसार लगाया,आज भी यह उतना ही सत्य है जितना उस समय रहा होगा,मनुष्य,देवी देवता,या स्पिरिट,या अन्य किसी को भी बुद्ध ने अपने पास आने से नहीं रोका लेकिन यह अधिकार किसी को नहीं दिया कि वे बुद्ध पर शासन करे,शाशक बुद्ध स्वयं ही रहे, रही बात अन्य की तो नियम को कोई माने अथवा नहीं, मार्ग उसे बने बनाए मिल जाते है,फिर भी,उन मार्गो पर चलना स्वयं ही होता हैं,💐 मल्लिका जैन

😱बचाना और मरना😀

किसी इंसान के पास जब यह छमता, हो,की वह किसी को वरदान दे सके या फिर श्राप, तो फिर उस व्यक्ति पर इसका क्या प्रभाव  पड़ेगा,साथ ही यह तथ्य भी विचार योग्य हैं,की क्या अन्य भी जो इस ताकत को जानते है,वह उन्होंने कैसे प्राप्त की,और जब पूरी तरह से इस ताकत को प्राप्त हुए लोगो को समझ में आया कि वे इस योग्य हैं,तब क्या हुआ,मतलब यह हुआ,की जन्म और मृत्यु,और इसके मध्य संसार में रहने वाले सभी वर्ग जो इस योग्य हो गए,यहां एक अजीब बात है कि,DNA स्ट्रेचर कई बार बनता और बिगड़ जाता हैं,साथ ही जिसे लोग विभिन्न जीवन प्रणाली समझ ते हैं वह सिर्फ सहायक का समूह बन जाती हैं,अब यहां बात आती हैं, शासन करता उचित हुआ तो व्यवस्था सुचारू होती हैं,यदि शाशन करता ही समझ न पाए तो व्यवस्था दोनों स्तर पर कुछ अलग ही हो जाती हैं,इस बात को वे ही समझ सकते है,जों इस योग्य हो,सब नहीं,बाकी तो सामान्य जीवन जीते हैं,साथ ही जो लोग, शासन करते है,वे हमेशा जीत ना ही चाहते है, कुछ तो इस हद पर पहुंच जाते है,की उन्हे फर्क पड़ना बंद हो जाता हैं, तो अब ये लोग करे क्या क्योंकि सब कर चूके,अब कुछ करने को बचा ही नहीं,यह जो न सिर्फ जान गया बल्कि उस

शुरुआत और अंत😀

ये समझ पाना आसान नहीं की कैसे शुरुआत हुई और अंत कैसे होगा,कुछ इन्सानों को एहसास होता हैं और, ज्यादातर को नहीं,जबकि ऐसे कई प्राणी है,जिन्हें ये अहसास हो जाता है,ऐसे कई पेड़ और जानवर है जो आने वाले समय को समझ लेते हैं,इन्हे देख कर कुछ इन्सान ठीक ठीक उस बात का पता लगा लेते हैं, जो घटने वाली घटना होती है,आज कल तो विज्ञान काफी आगे है,लेकिन बुद्ध के समय में क्या ये सब नहीं था,या फिर किन्ही अन्य सम्मानित लोगो के समय में ये सब नहीं था,ये सब कुछ तब भी वैसा ही था जैसा आज, फर्क सिर्फ इतना है तब कुछ लोग इसे जानते और उपयोग करते थे,बाकी नहीं और आज भी ये सब ऐसा ही है,फर्क सिर्फ इतना है की,आज भी सब इसे समझ नहीं पाते 😂और ये एक तरह से अच्छा भी है,, मल्लिका जैन अस्तु

मानसिक दशा और जीवन😀

मानसिक दशा सिर्फ, मनुष्य में ही नहीं होती,बल्कि जीव जंतु और पेड़ पोधो में भी होती हैं,जिस तरह व्यक्ति पर वातावरण असर डालता है,, उसी तरह बाकी पर भी,इसका असर होता हैं, ये कोई व्यक्ति तब समझ पाता है,,जब वो इन से जुड़ा हुआ हो,प्रत्येक का इस प्रकृति में अपना स्थान है पर ये जरूरी नहीं,की सब इसे महसूस कर, सकें, हा काफी हद तक विज्ञान के प्रयोग इसे समझ ते हैं,लेकिन, कुछ ऐसा भी। है, समझ से परे हैं,या ये कहे। की सब के लिए जानना आवश्यक नहीं,,पर मनुष्य जो भी सहायता करते है,,वैसे ही बाकी। प्रकृति भी करती हैं, मल्लिका जैन 😀 अस्तु

संबंध और धर्म

अक्सर कहते है,जीने के लिए किसी का भी,समूह  में रहना जरूरी होता हैं,लेकिन,सत्य ये है कि,कितने ही व्यक्ति समूह में रह कर,भी अकेले होते है,जबकि हमेशा कुछ जाने पहचाने व्यक्ति उनके साथ होते है, इस बात को समझ ने कि कोशिश करते है,क्या होता है? व्यक्ति के विचार,उसे समूह से जोड़ कर रखते है, फ़िर भी उसी समुह के व्यक्ति,एक विचार वाले होते हुए भी अलग अलग वातावरण में बड़े होने के कारण,और कभी कभी एक वातावरण के होते हुए भी मानसिक स्तर पर अलग होते हैं,लेकिन कार्यप्रणाली एक हो सकती हैं,व्यक्ति के दिमाग और कार्य व्यवस्था का सन्तुलन ही सामान्य को आगे ले कर जा सकता है यही बात जब किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में,कही जाए जों वस्तव में स्वयं में परिवर्तन चाहता हो,न कि अन्य में,तो ये बात  बादल सकती हैं क्योंकि यहां ऊर्जा के स्तर पर कार्य होते है,यह परिवर्तन,व्यक्ति की ईच्छा होते हुए भी,किसी और के द्वारा होते है,क्योंकि यहां "कार्य और कारण" का प्रमाण वह ही समझ पाता है जो इस तरह की वास्तविक अवस्था से निकाल चुका हो,ये बात जितनी आसानी से मैं लिख रही हूं उतनी आसनी से समझ में नहीं आती, क्योंकि योग्यता का माप

आरोग्य और बुद्ध

बुद्ध ने आरोग्य के नाम पर लोगो को ठगा नहीं, न ही कभी किसी की शक्तियों को नस्ट किया, वे हमेशा इस पक्छ में ही रहे की लोग उसका दूर उप योग न करें,आज का समय लोगो के लिए तकलीफ दायक या फिर किन्ही के लिए स्वासथ्यवर्ध्दक इसलिए भी ही गया है,क्योंकि यहां,पर कई छेत्रो में व्यक्ति की वास्तविक ऊर्जा का प्रयोग लोग स्वयं करते हैं और, इन्सान सिर्फ इतना ही समझ ता है उसने कुछ नहीं किया क्योंकि,एक ऐसे एहसास, में रखा जाता है जनहा लोग उस के साथ कुछ भी करें,उसका इंसान को पता ही नहीं चलेगा की उसने क्या किया?तो अच्छा यही है,की आरोग्य,याने स्वास्थ्य के नाम पर ढोंग,न ही किया,जाए तो,बेहतर, बुद्ध ने कभी भी किसी के अध्यात्मिक,तथ्य का उलंघन नहीं किया, है न ही ये कहा की,आप किसी दूसरो के अधिकरबका उलंघन करें,क्या किसी ने कभी भी ये सोचा है की क्या होगा,जब कोई व्यक्ति,ही किसी व्यक्ति को किन्ही कारणों से यहां से वहां भेज दे,और खुद उस व्यक्ति को पता ही न चलें,क्योंकि,,आप से जों लोग ऊपर है या जो तथा कथित अपने आप को ऊपर समझ ते हैं आप को आराम के नाम पर, एक नई, अवस्था में डाल दे,और आपको ये पता ही न चलें,की आप ने किया क्या, इसल

हंसी😂

कभी किसी ने सोचा है,हंसी कितनी प्यारी है,ये,तब आती हैं,जब,हम भी पता नहीं होता कि हम हंस देंगे, इट्स, ब्यूटीफुल, क्या कभी किसी साधू को हंसते हुए देखा है,जो उसकी वास्तविक अवस्था में हो,ऐसी हंसी,जब भी आती हैं ये कल्याण कारी होती हैं,मुझे लगता हैं,बुद्ध भी  कभी संघ में हंसते होंगे बिल्कुल इंसान जैसे,ही,सोचिए कि बुद्ध जब हंसते हो तो कितनों का कल्याण होता होगा, एक बार बुद्ध से (भंते,नाम याद नहीं इसलिए इसका प्रयोग किया) ने पूछा,आप क्या इस्त्री को संघ में शामिल क्यों नहीं करते वे भी इसकी अधिकारी है,तब बुद्ध मुस्कुरा दिए,और फिर इस्त्री संघ की स्थापना भी हुई,जिन्हें हम कई नामों से जानते हैं,ये सच है कि इनके बारे में कम लिखा या सुना गया,या फिर उन्हें किसी रहस्य जैसा रखा गया,क्योंकि यहां जो नियम है,जिनमें स्पर्श, स्वाद,आदि का वर्णन मिलता है,ये भी स्वत ह शामिल हो गए,ऐसी इस्थीती में,निश्चित ही,कुछ विशेष नियम बने,और पल्लवित भी हुए, जिनमें से कई को लोग,बुद्ध के इस्त्री स्वरूप के रूप में भी मानते,है उन्हीं में से एक है, देवी तारा, कम ही लोग इस बात को जानते है कि,"तारा" बुद्ध का हंसता हुए और क

क्रिएटिंग अनवर्नमेंट फ़ॉर बिलीव

बुद्ध ने शायद ही कभी इस बात का अंदाज लगाया होगा, की,उनकी कही हुई, बातों का अभी इस प्रयोग भी होगा, जब लोग इस बात को,ठीक वैसा ही समझ पाएंगे,जैसा वे कहतें है,संघ में बुध्द ने,कभी भी इस बात से इनकार नही, किया कि तकलीफ होने पर ट्रीटमेंट न किया जाएं, बल्कि हमेशा,यह बतलाया कि हम सही ,तरह से उपाय औषधि का प्रयोग करे,वे ये अच्छी तरह सर जानते,और समझ ते थे,की,एक ऐसी इस्थिति, भी आई हैं, जब सही, तरह से,वास्तविक स्थिति नही बनती तो लोग उसका गलत,फायदा भी उठा सकतें, है,इसलिए,उन्होंने स्वयं इस बात का ध्यान संघ में रखा,की,स्वयं में ही अर हत्व की प्राप्ति हो, ताकि, कोई,नकली वातावरण तैयार न करे, साथ ही,समर्थ वान ही बुद्ध बन सकें, क्योंकि जब कोई इस वास्तविक इस्थिति में पहुंच जाते हैं तो, उन्हें,अपने आप, ही एक ऐसी अवस्था की प्राप्ति होती हैं, जो प्रशंशा के योग्य होती हैं, न कि किसी का मज़ाक, या फिर धोखा दे कर,वर किसी व्यक्ति को वाहक बनाने के खिलाफ ही रहें,साथ ही यह भी ध्यान रखते थे कि, कोई, अनुभव के स्तर पर भी,योग्य हो न कि दिखावा करने वाला,यही कारण था कि लम्बे समय तक उन्होंने, इस्त्री वर्ग को संघ में नही लिया

वातावरण🌐

वातावरण में कई तरह से परिवर्तित होता रहा है, जिससे बुद्ध कालीन समय भी अछूता नहीं है,फर्क इतना है, तब मानव जाति और बाकी लोगों की शरिक आकृति में,अधिकतम लम्बाई हुआ करती थी मतलब उनकी हाइट, और उसी अनुपात में मोटापा भी जिसे हम आज कल फेट के नाम से भी जानते हैं, तो आज का वातावरण विशेष रूप से साल 2020 एक अद्भुत क्षमता वाला समय है,यंहा,अनगिनत परिवर्तन हो रहे है,, जिन्हें देखकर हमे या विज्ञानिको को ये लग सकता हैं कि वे इसे समझते हैं,(पर वास्तव में धर्म और विज्ञान एक सिक्के की तरह ही है) यंहा, अनगिनत संभावनाएं हैं, बात सिर्फ इतनी है कि हम वास्तविक नज़रिया कैसा रखते हैं,और बुद्ध इस बात को इतनी अच्छी तरह से समझते थे कि,उन्हों ने कहा "नमो तस्य भगवतो अरहतो सम्मासम बुधस्य"जो वर्ग इस बात को समझ लेते हैं, वे लोग नाराज हो या खुश हो या फिर सामान्य अर्थात न्यूटल, वे सदैव,एक ऐसी दशा में रहते हैं, जो शायद वे ही समझ सकते हैं, आप कुछ भी करें एक न एक दिन यह नियम लागू हो ही जाता हैं मल्लिका जैन😁 अस्तु

🛢संघ और धर्म🔮

"संघ और धर्म" एक सिक्कें के दो पहलू की तरह है, "जब कोई ऐसा व्यक्ति,जो मानसिक,सामाजिक,शारीरिक,और धन का उपयोग कान्हा और कैसे किया जाए ये जान जाता हैं तो वह यदि अपने आप मे भावनात्मक तत्व को भी उतना ही मजबूत कर लेते है, तो लगभग बुद्ध जैसी इस्थिति बन सकती हैं,  ऐस व्यक्तित्व का जो वास्तविक स्वामी याने की ठीक ऐसा ही जानने और समझने वाला होता हैं, तो उसके साथ,ऐसे व्यक्ति जुड़ते हैं जो किन्ही कारणों में से एक न एक विचार धारा को समझ सकते हैं यह ही वस्तविक संघ का मतलब होता हैं।" अब बुद्ध ने धर्म नही बनाया था और न ही संघ,जब बुद्ध ने इस बात को देखा कि जो वो बतलाते,उसके मानने वाले,सही तरह से उस बात का पालन करने की कोशिश, करते है या उन्हें मदत की जरूरत पड़ती हैं, तब संघ को उन्होंने बनाया, फिर जो बताया वह धर्म बना। (यंहा धन शब्द का प्रयोग उचित किया गया है, क्योंकि, धन की आवश्यकता संघ को चलाने के लिये भी होती हैं बिल्कुल वैसे ही जैसे, किसी राज्य,व्यक्ति,देश,या फिर एक सामान्य परिवार में,) मल्लिका जैन😃

बुद्ध और भगवान

ऐसा कहते है (मैने सुना और पढ़ा है)भगवान भी बुद्ध  की शरण में खड़े हो जाते थे,ऐसी एक घटना और कथा है,एक बहुत महंगे कपड़े बेचने वाला व्यापारी जब बुद्ध के,पास गया तो,बुद्ध के प्रवचन पूर्ण हो जाने पर भी वह  वनहा रुका रहा और कुछ वस्त्रों को उपहार स्वरूप बुद्ध को अर्पित किया,तब आगे यह व्यापारी भी यह कहते हुए वहा से निकला"मैने तुम्हे जीत लिया",तो लोगो ने पूछा क्या जीत लिया,तुमने उस व्यापारी ने जवाब दिया, "मन" इतनी खूबसूरत बात को वह व्यापारी कुछ ही समय में बुद्ध के पास जाने पर कैसे समझ गया,जबकि बाकी के उनके संघ के भिखू ओ ने नहीं कहीं, तो अब सवाल यह उठता है कि क्या यह समुदाय जो इतने समय से बुद्ध के साथ चले,उन्हें क्या मन का पता नहीं था,या फिर व्यापारी क्योंकि लम्बे समय से एक ऐसी व्यवस्था में चल रहा था जो,व्यापार की समझ रखती थी,वो "लकीर का फकीर"नहीं था इसलिए गृहस्थ होते हुए भी "मन"जैसे जटिल विषय को समझ गया, हां सवाल तो कई है फिर भी, मन एक अत्यंत ही जटिल विषय आज तक इसलिए  है क्योंकि,इस पर जीत हासिल करना आसान तब ही हो सकता हैं,जब आपके पास बुद्ध जैसा कोई हो,क्

🌞 नींद🌝

व्यक्ति की नींद, गहरी आस्था में जब होती हैं,जब वह स्वयं किन्हीं कारणों से स्वयं को युवा जैसा बनाएं रखें, जैसे उस सम्बंधित व्यक्ति की इच्छित, क्रिएटिविटी, जो किसी भी क्षेत्र में जो सकती हैं,यह स्वास्थ्य का महत्वपूर्ण उद्देश्य है,बुद्ध के अनुसार,(जिसे कई वैज्ञानिकों और डॉक्टरों द्वारा समय समय पर प्रूफ किया जा चुका है)जब कोई व्यक्ति अपने इच्छित कार्य में लगा याने की पूर्ण रूप से संबंधित कार्य को करने की प्रक्रिया में संलग्न रहता है तो, उसे आवश्यक शारीरिक और दिमागी रूप से स्वास्थ्य प्राप्त हो जाता हैं,इस कथा को बुद्ध ने एक इस्त्री के कार्य में,संलग्न रहने पर निरोगी हो जाने वाली बात से स्पष्ट किया है, तो ऐसे व्यक्ति जो किन्हीं कारणों से अनिद्रा  को लेकर परेशान है,वे सबसे पहले इसे स्वीकार करें की उनके स्वयं के उतपन्न कारणों के कारण ऐसा है, दूसरा जन्ह तक हो सके,स्वयं को उन्माद से बचाए,अपने  पारिवारिक मित्रो से(विश्वशनीय) से बात चीत,और यथा सम्भव समान्य जीवन, इसे ही बुद्ध ने मध्यम मार्ग की श्रेणी में रखा है 🌝  मल्लिका जैन 💐 अस्तु

🌄दिन और रात🌌

मै अक्सर एक उदाहरण देती हूं,अपने मित्रों को,की दिन और रात दोनों साथ ही चलते हैं,इस को ही देखते हैं बुद्ध ने केसे बताया है, बुद्ध ने अपने सभी संघ में में ये विशेष बात कही थी कि आप भिक्षा,मांगने के बाद जब आयेंगे तब शेयर करेंगे,ही यह भी की,रात होने से पहले ही भोजन कर लेंगे,इसका साइंटिफिक कारण ये था,की उस समय,रात में जब चले तो जीव जंतु मर सकते थे,साथ ही मानव शरीर इतना चलने के बाद जो भोजन ग्रहण करता वो प्रोपर डाइजेस्ट हो जाएं और बॉडी क्लॉक प्रॉपर चलती रहे वो डिस्टर्ब न हो,क्योंकि जब बॉडी का बायो केलकुलेशन डिस्टर्ब होता है तो,न सिर्फ उस व्यक्ति पर, बल्कि संबंधित लोगो पर भी इसका फर्क पड़ता है, ये बिल्कुल प्रथ्वी सूर्य और चंद्रमा के साथ चलने जैसा उस समय बनाया गया था। मल्लिका जैन अस्तु👍🤗

व्यवहार और समाज

वैरी फर्स्ट, समाज का मतलब क्या है?सभी जानते हैं, जिसमे हम रहते हैं तो,क्या हम इससे सामंजस्य स्थापित कर पाते हैं? या फिर किसी अपने ही दायरे में सिमट जाते हैं,ज्यादातर ऐसा ही होता है,व्यक्ति उस दायरे में सिमट जाते हैं जो उनके व्यवहार में और उस समय में समाज में चल रहा होता है, तो यदि कोई ऐसा हो जो इस व्यवस्था से आगे हो तो इसका मतलब स्पष्ट है कि समाज उस व्यक्ति के अस्तित्व से इंकार करेगा या फिर यदि वह सफल है तो,उस व्यक्ति से इतनी एक्सपेक्टेशन रखेगा, जिसकी उस संबंधित व्यक्ति को कोई जरूरत नहीं होती,अब वह व्यक्ति क्या करें की उसकी लाइफ में इन सब का प्रभाव सामान्य हो जाए,?क्योंकि, संबंधित व्यक्ति की अलग अपनी खुद कि एक्सपेक्टेशन भी है जो उस समय से बेहद आगे कि है,तो यहां पर ऐसी कल्पनाओं का जन्म होता है जो कि किस प्रकार इस समाज और उस व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करती हैं, जो उसके वास्तविक जीवन में फोर्स का कार्य करती हैं ये व्यक्ति,यदि इतना सब समझ लेता है,तो जब भी, कोई कार्य करेगा,उसमे उसके वे सहायक या तो शामिल हो जाएंगे जो उस व्यक्ति के प्रति ईमानदार हैं,और जो नहीं है, वे साथ छोड़ देंगे,इस तरह से

😈अस्तित्व 👥

अपने ही अंदर के,मन के साथ,जीना सभी को होता है, शायद ही ऐसा कोई होगा,जो अपनी हकीकत किसी को वैसी ही बता पाए,पर क्यो? क्योंकि, कुछ सत्य ऐसे भी होते हैं,जिनसे वह व्यक्ति खुद भी परिचित नहीं होता,अब यदि कोई सम्पूर्ण रूप से परिचित हो भी जाए तो क्या वह कह सकता या कह सकती हैं वह ही सब कुछ जानता है? यदि ऐसा किसी भी के साथ हुआ तो इसका मतलब हुआ की उस सम्बन्धित व्यक्ति ने,अपने दिमाग पर काबू पाना सीख लिया है, और इसी सभी बाते जो एक सामान्य मनुष्य के लिए संभव नहीं है,वो वह सब जान गया या गई है,अब, यहां सवाल ये उठता है कि अब वो खुद क्या करें?क्योंकि यह स्टेज ऐसी हैं, जंहा,अस्तित्व खत्म मतलब अब सिर्फ दिखावा बचा हैं, क्योंकि जिसने सब जाना वो केवल उसको ही यह समझा सकता हैं कि, "देखो यार ये मेरी कुछ समस्याएं है क्या अब तुम कुछ कर सकते हो,या फिर ये की चल आज कुछ नया करते हैं" तो जिसे हम अस्तित्व के नाम से जानते हैं वो यह है, जब हमारा वजूद खत्म हो जाता हैं,हम जानते हैं कि ऐसा ही गया और दूसरो को लगता है,वो इस अब जानने वाले से बेहतर है,अब जब कोई इस भी ऐसा होता है तो तब भी अपनी ही तरह से जीता है,और बावजू

अग्नि परीक्षा 🔥

वैसे तो ज्यादातर व्यक्ति बुद्ध के ही बारे में लिखते हैं, पर कोई ये समझा शायद या फिर, किसी ने इस बारे में लिखा हो तो मैने पढ़ा नहीं, "अक्सर उनकी पत्नी उनकी राह देखा,करती थी, पर उन्हें कोई ख़बर मिलती तो किसी तरह से खुद को समझा लेती थी, यहां पर कभी भी किसी ने उन इस्त्रियो की बात नहीं की जिनके साथ बुद्ध राज महल में, लम्बे समय तक रहे,तो क्या कोई विश्वाश के साथ कह सकता हैं,की उनका केवल एक ही पुत्र था,या उनकी कोई बेटी भी थीं,नहीं,क्योंकि उन लोगो के बारे में जानकारी दी ही नहीं गई,बावजूद इसके कि बुद्ध ने बुद्ध बनने की प्रक्रिया के दौरान उन सबके लिए कुछ न कुछ किया," यदि कोई धर्म के नज़रिए से मेरी ब्लॉग को पड़ेगा तो शायद , नाराज़ हो सकते हैं फिर भी सच यही है कि इस समय बुद्ध का सिर्फ एक बेटा नहीं था,बल्कि वो भी अधिकारी थे जिनको उनके याने की बुद्ध के पिता,ने बुद्ध के पास रखा था,और बुद्ध ने उतनी छोटी उम्र में ही सभी के कर्ज चुका दिए थे, कैसे? इसका सबूत मै न दे सकती हूं और न ही देना चाहती हूं,सिर्फ इतना ही कह सकती हूं बुद्ध ने किसी को अप्सरा,किसी को दुर्गा,किसी को काली,और किसी को सरस्वती के

मैटर ऑफ सर्वाइवल

अक्सर ये समझ में नहीं आता कि हम जो तकलीफ़ उठा रहे, हैं वो वास्तव में हमारी है या दूसरों की,कुछ लोगो, आदतन ऐसे ही होते हैं,जो दूसरो की तकलीफ़ खुद लेे  लेते हैं,क्या कहें इन्हीं व्यक्तियों से ये संसार चलता है, क्या कभी आपने सोचा है कि क्यो,इंसान ही दूसरो कि सहायता करते हैं?यदि आप ऐसा सोचते हैं तो ये भी अच्छा है,पर ये समझ में ज्यादातर आता है कि जानवर  भी ऐसे ही होते हैं,वो भी एक दूसरे की सहायता करते हैं, जबकि इंसान कई समय खुद के हित के,इन्हे उपयोग करते हैं,वहीं कुछ इंसान अपना पूरा जीवन ही वाइल्ड लाइफ में बीता देते हैं,तो क्या,दर्द हो सुख का रास्ता है? या फिर सुख दर्द को मिटा कर जीवन को स्वीकार करता है,ये एक ऐसा सच है जो,ये साबित खुद ही करता है कि हमारा वातावरण हम पर असर डाल रहा है, क्योंकि हम परिस्थिति के अनुसार ही कार्य प्रणाली को समझ रहे हैं, इस सब के बीच,मुस्कुराहट और तकलीफ़ दोनों महत्वपर्ण हैं,मुस्कुराहट शरीर में ऐसे हार्मोन को उत्पन्न करती हैं,जो जीवन के लिए जरूरी है, हां ये जरूरी है कि मुस्कुराहट नकली न हो,जबकि दर्द हमेशा असली ही होता है,आजकल लोग दोनों ही क्रिएट कर लेते हैं,तो सम्पू

मीनिंग ऑफ ऐज इन धर्म

कई बार हम सोचते हैं, ऐज सिर्फ वही है,जो हम अपने जन्म से लेे कर अब तक,की उम्र को ही वास्तविक उम्र समझते हैं,और सही भी है क्योंकि हम सिर्फ उतना ही जानते हैं, कभी किसी ने अपने शरीर का डॉक्टर  मसल्स और बोन का टेस्ट करवाया हो तो पाएंगे,की वास्तविक उम्र,और शरीर के अंगो की उम्र में क्या अंतर होता है,इसे हम ऐसा समझें कि किसी उपकरण की मदत से हम खुद को समझ ने कि कोशिश कर रहे हैं, तो समझ में आने वाली बात ये है कि इस सब का धर्म से क्या संबंध है? धर्म भी ऐसे ही चलता है,चाहे वो किसी भी समुदाय के लोगो द्वारा पालन किया जा रहा हो,प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छाओं के साथ धर्म में परिर्वतन होता है,बिल्कुल वैसे ही जैसे शरीर में परिवर्तन हो रहा है,यदि व्यक्ति ज्यादा प्रभाव शाली है तो वो उसका उपयोग कर,बाकी लोगो से आगे होता है,जैसे ओहदे में,या किसी अन्य क्षेत्र में,जो उसका इच्छित होता है, "जब कोई व्यक्ति बिना किसी डॉक्टर के इस बात को समझ ने सफल हो जाता हैं तो उसे हम धर्म की भाषा में वह व्यक्ति किसी विशेष िइस्थीती में होता है" यह है उम्र के बारे में जानकारी इसमें हम अक्सर जब ये अच्छी तरह से जान जाए कि क

हाइजीन के मायने समय के साथ और धर्म😃

क्या कोई ये समझ पाया है कि एक सामान्य व्यक्ति और धनवान में कितना फर्क है,सिर्फ इतना सा की धनवान के पास जो पैसा या संपत्ति है,उसमे से वाइब्रेशन ऑफ मनी कितनी खर्च हो गई,कितने सालों में कितनी, बिल्कुल वैसे ही जैसे कि एक सामान्य व्यक्ति उसी समय मूल्य चुका देता है,जो भी सामान वह खरीदता हैं,पर जब कोई इस बात को समझ ले कि कितने वर्षों में कोन सी मूल्यवान मुद्रा का उपयोग किया जाएगा,और वह मुद्रा कब तक चलेगी, हां कुछ हद तक ये किसी देश के स्टॉक एक्सचेंज जैसा है,मगर इससे बेहतर और एक स्टॉक एक्सचेंज है, जिसे आज कम ही व्यक्ति समझ ते, वो है धर्म का वैज्ञानिक आधार,जो अपने वर्ग के समूहों को संजो कर, उन्हें आगे लेे जाने की कोशिश करते हैं,व्यक्ति जो पैसा धर्म के लिए खर्च करते हैं, वो ही उनके काम आ पाता है,चाहे वो किसी भी धर्म के क्यो न हो,क्योंकि बाकी तो सब खर्च हो गया,और अब धर्म में किसने कब कितना पैसा लगाया,यह हिसाब कन्हा होता है?ये वाकई में अश्च रय्य का विषय है,तो आज के समय में जब परिभाषा बदल रही हैं तो इसका मतलब ये हुआ की,क्या स्वर्ण की परिभाषा बदल गई,या फिर कोई दूसरा मेटल प्रयोग किया जाता हैं,क्योंकि

वर्तमान समय और धर्म

वास्तव में कभी भी,या किसी भी समय में यह नहीं कहा जा सकता कि,जो में जानती हूं वह ही सच है सच इससे आगे,भी ही सकता हैं,तो आज के वर्तमान समय याने sun2020 मतलब मेरे हिसाब से ये दोनों तरह की ताकत को ज्यादातर व्यक्ति और किसी समय पर राज करती हैं,उन्हें सामान अधिकार दिया गया है वो आगे आए और जो चाहती है कर सके पर,क्या व्यक्ति ये जानते हैं वो शक्तियां कोन सी है,शायद कुछ व्यक्ति जरूर इसके बारे में जानते होंगे,🌝(ये हमेशा की तरह वो शक्तियां हैं जिन्हें व्यक्ति अच्छा या बुरा समझ लेते हैं और,फिर उसके अनुसार अपनी ज़िन्दगी को जीते हैं) तो फिर ,"धर्म" क्या है, वेल चलिए थोड़ा सा मेरे विचारों के अनुसार समझ ते हैं, धर्म का मतलब होता है,व्यक्ति,समझ,उससे संबंधित कानून,और राजनीति, लेकिन जब कोई भी साधु या संत अपने अनुसार व्यवहार करते हैं तो,इसी तरह उनकी भी अपनी व्यवस्थाएं बन जाती हैं, तो जैसे व्यक्ति अपनी कई बातों को किसी को नहीं बताते, इन लोगो को भी उस सुप्रीम से ,(यदि कोई वांहा तक पहुंच सका तो🌝,क्योंकि व्यवस्था इसी होती है कि वन्हॉ कोई पहुंच न सके,क्यो ?क्योंकि यदि हर किसी ने आदि और अंत जान लिया त

अवेकनिंग विथ सेल्फ💆

कई लोगो ने बुद्ध की कथाओं को सुना,और बहुतों ने उसे समझ ने कि लगातार कोशिश भी की,और अब भी करते रहते हैं,तो उनमें से एक कथा है अंगुली माल की,तो सबसे पलहले वर्तमान के उन सभी गणमान्य व्यक्ति यो से, माफ़ी क्यो शायद इसका उत्तर आगे जान जाएंगे,! 😄कोई बेहद खास समय रहा होगा जब बुद्ध अंगुली माल के पास पहुंचे,तो कथा कहती हैं (ऐसा मैने भी सुना है) की अंगुली माल बुद्ध को लगातार चलते हुए देख रहे थे,जबकि वो खुद एक ही स्थान पर खड़ा हुए था,आगे की कथा सभी जानते ही हैं, असल में बुद्ध अंगुली के उन सभी तकलीफों को स्वयं ही लेे रहे थे,जो अंगुली माल को क्रूर बना रही थी,मतलब उस इस्प्रिट गाइड  को जो अंगुली माल को हत्या के लिए और वास्तविकता से दूर कर देती थी,मतलब उसके दिमाग के किसी हिस्से में क्रूरता भर देती थी,जब बुद्ध ने जान और देख लिया की अब अंगुली माल का समय पूर्ण हो गया हैं और वो अपने तय लक्ष्य से दूर हो जाएगा,तब सही समय पर बुद्ध ने उसे उस िइस्थीती में पहुंचने में सहायता कि जो उसके जीवन का लक्ष्य था,तो इसका मतलब स्पष्ट है,बुद्ध ( जो उस समय में थे और जिनकी कथाओं को हम लोग सुनते हैं),वे स्वयं में इसी कई स्पिर

🏔️ध्यान 👥

ध्यान पर बहुत से सम्मानित व्यक्ति बहुत कुछ कह चुके हैं,फिर भी मै इसे अपने शब्दो में व्यक्त करने की कोशिश करती हूं,तो,कोई भी व्यक्ति यह नहीं कह सकता कि एक तरह कि प्रणाली सभी पर निरंतर चलती रहेगी, यहां ध्यान मेरे हिसाब से सिर्फ एक ऐसी तलाश है जो उस व्यक्ति को जो वास्तव में हकीकत को जानना और समझना चाहते हैं,उन लोगो का अलग अलग तरह से, संग्रहित किया हुआ नालेज है,जो विभिन्न कलचर,लोक रंग से भर पूर हैं,तो अब सवाल ये है की आज का युग क्या पहले से अलग है या वैसा का वैसा ही है,तो सच ये है की,यह युग जिसमें हम जी रहे है, हर तरह से बेहतर है, सिर्फ इतना समझ सा जाए की जो हमारी हकीकत है,उसके साथ अपनी महत्वाकंक्षाओं का तालमेल केसे किया जाए,तो अब जो व्यक्ति ध्यान कर रहा है,उसने कोन सी प्रक्रिया को स्वीकार किया है,और इसके साथ ही,किसको उसे अपने से अलग करना होगा,ये समझ ना,खुद उस व्यक्ति के लिए आसान नहीं जो लगातार ध्यान पर फोकस कर रहे है,जिनमे क्योंकि अंतिम इस्थिती निर्वात होती हैं,अब इसे शून्य कह सकते हैं,तो कोई जीवित रहते हुए शून्य में जा कर वापस से अपनी वास्तविक जीवन को स्वीकार कर जीने लगे, वैसा ही जैसा उस

बुद्ध और महावीर

बुद्ध और महावीर दोनों ही सम कालीन थे,जिसका सबूत कई जगह मिलता है जिनमे से अजंता एलोरा गुफाएं एक है,जंहा कई तरह की रचनाएं निर्मित हुई हैं और लोगो ने, उसे सिर्फ अपनी बेवकूफी के कारण,या समझ में नहीं आ पा ने के कारण कुछ और ही समझ लिया,अब ज्यादातर समय से ऐसी सभी जगह अर्कलाजी डिपार्टमेंट ने टूरिस्ट के लिए दर्शनीय स्थल बना दी है,जबकि वो उनको लोगो की ध्यान स्थली भी रही हैं,अब जब लोग वनहा पर रहे तो उनके साथ विभिन्न तरह की घटनाएं हुई जिन्हे लोगो ने अपनी अपनी सोच के हिसाब से समझा, तो इस अजंता एलोरा,क्या है,ये मै दावे से नहीं कह सकती की मै ही अब कुछ जानती हूं,पर,जब कोई इंसान की वास्तविक जीवन में देखता है,तो पता चलता है,सब कुछ उतना अच्छा नहीं है, यनहा लोग,उन हकीकत को देखना और समझ ना चाह रहे है जो बीते समय में हुई थी,पर आज हकीकत बदल चुकी हैं,लोग जिनके पास इस बात की क्षमता है जो बीते समय में जा सके या उसे क्रिएट कर सके,वे उसे कई बार बनाते और बिगड़ते रहते, हैंक्योंकि वो ये जानते हैं कि आम इंसान के बस की बात है ही नहीं,की वो वह कर सके जो ये सब समर्थ वान आज के समय के सम्मानित लोग कर रहे हैं,क्योंकि इन सम

आत्मा और शरीर

व्यक्ति का शरीर, स्वयं में, सक्षम है,और उसमे अनत संभावनाएं हैं,आज के समय में जब लोग टेक्निकल उपकरणों के साथ जीते हैं,तो वे उनका उपयोग सीख  रहे हैं,(साथ ही पहले भी ऐसा होता रहा है)तो बुद्ध ने आत्मा से इंकार क्यो किया,इस पर कुछ,कोई तभी बोल सकता है,जिसने स्वयं इस बात को महसूस कर लिया हो,मतलब,शरीर की वो इस्थिती जिसमें को कंसेंसस रह कर अपने कार्यों को पूरा करने की कोशिश कर रहा है, तो ज्यादातर लोग मृत्यु के बाद ही इसे प्राप्त कर पाते हैं, और फिर उनका प्रयास शुरू होता,की वे किसी तरह से खुद को स्थापित कर सके। तो जब बुद्ध ने इसे जाना तो ये वो समय था जब वो राज महल में ही थे,अब क्योंकि उन्होंने जब तक बीमारी, बुढ़ापा और मृत्यु इसे नहीं देखा,तो उनके लिए सिर्फ यौवन ही सत्य था,(इसे ज्यादातर व्यक्ति हीनयान या महायान तंत्र कहते है) तो अब जब बुद्ध ने यह जाना की बाकी भी कुछ होता है तो उन्होंने उसे समझ ने प्रयास शुरू किया,लेकिन महल में पुनः पुनः वहीं सब दोहराती हुई बाते थी,इसलिए उनको नए उपुक्त स्थान की आवश्यकता महसूस हुई होगी,और उन्होंने फिर से स्वयं को इसी परिस्थितियों में रखा जो बिल्कुल विपरीत थी,(अब यह

मिनिग ऑफ ओरा एंड स्पिरिट वर्ल्ड

क्या हुआ होगा जब उस समय के बुद्ध ने अपने समकालीन लोगो को किसी ऐसे की पूजा या वार्शिप करते हुए देखा होगा, जिनमे कुछ थोड़ी संभावनाएं रही होंगी,? आज इसे मै अपने आस पास महसूस करू तो भी क्या ये सच में स्पिरिट वर्ल्ड हैं,🌝 यदि ये आज के समय का सत्य है कि व्यक्ति के साथ वहीं आगे चल सकते हैं,जो उसके साथ पहले से चल रहे है,मतलब ऐसी बाते जो उसने अपने परिवार ,मित्र,और बाकी लोगो से सीखी, वे ही उसके साथ चलती हैं और जब कोई ओरा को स्पष्ट करने की कोशिश करता है,तो वह व्यक्ति जो ये कार्य कर रहा है सामने वाले से उसकी वो सद्भावनाएं लेे लेता है जो उसके बेनिफिट में सहायक होती हैं,कभी कभी कोई हायर एंग्री यंग गुस्से वाला हुआ तो, डिस्ट्रक्टिव, भी लेे लेते हैं और उन्हें किसी न किसी ऑब्जेक्ट में जिन्हे लोग रत्न या ऐसे ही किसी और नाम से अपने सुरक्षा के लिए उपयोग करते हैं,उसमे बंद कर देते हैं,ये सिर्फ इतना ही है जिसे समय समय पर निकलते हैं जिसे क्लिनिग प्रोसेस कहा जाता हैं उसकी जगह किसी अन्य को इंप्लांट कर देते हैं,अब यह पर जो इस्पिरिट हैं वो खुद को डील कैसे करें, तो बंद रहेगी,तो सदैव ही निकालने का प्रयास करेगी, और

कार्य और कार्य प्रणाली

कर्म का सिद्धांत,उतना पेचीदा नहीं है जितना हम समझ रहे है,बल्कि ये तो आसान है,क्योंकि सिर्फ ये समझ में आता ही नहीं,ऊपर से व्यक्ति ये कभी समझ नहीं पाता कि उसके थॉट का ओरिजिनल वास्तविक नियंत्रण कान्हा है,जो दिमाग में विचारो को डाल रहा है,जब तक आप या कोई व्यक्ति इस बात को समझ की उसके साथ हो क्या रहा है तब तो ज़िन्दगी ही पूरी हो जाती हैं,ऊपर से दिमाग कभी उतना एक्टिव होता ही नहीं,,क्योंकि विचारो को डालने वाली श्रृंखला सिर्फ वही विचााभिव्यक्ति देती हैं, जो वो खुद चाहते है,और इंसान पूरी ज़िन्दगी ये समझ नहीं पाता उसने आखिर किया क्या जो तकलीफ़ उठानी पड़ रही है,या सुख भोग रहा है, दोनों एक बरा बर, तो फिर" किस बात का सिद्धांत, यान्हा तो कर्म भी व्यक्ति के हांथ में नहीं है"😀 जो सुख उठा रहा है वो अपने आप में खुश है,और जो दुःखी है वो सुख की तलाश में हैं और इंट्रेस्टिंग दोनों ये जानते ही नहीं की से किसके नियंत्रण में ये सब कर रही है 🌝 तो यदि मै इस बात को समझ गई हूं तो भी मुझे, अब तक नियंत्रक का पता नहीं चला, इसका मतलब स्पष्ट है की मुझे अभी बहुत कुछ सीखना है,पर सिखाएगा कोन? या मै भी यही का ह

धर्म और राजनीति

अक्सर जब भी धर्म के बारे में कोई एक विचार धारा,प्रगट की जाती हैं तो,इसलिए नहीं कि वह व्यक्ति अपने आप को सर्वे सर्वा बता रहा है,बल्कि इसलिए, की वह व्यक्ति ये जानता और समझ ता है कि विचारधारा क्या कर सकती हैं, बुद्ध ने कभी भी किसी धर्म का निर्माण नहीं किया न ही ये कहा कि इसको ही मानो, उन्होंने ये बताया कि आम इंसान भी चाहे और,उसके द्वारा किए गए कार्य उसका साथ दे दे तो वह आगे जा सकता है,ये उस समय की बात थी, आज के समय में लोग जो इस अवस्था में पहुंच जाते हैं, की वे अपने शारीर से बाहर,निकाल सके,और वो ये चाहते है कि उस मार्ग पर आगे जाए तो, उसके आस पास की परिस्थिति है विशेष तौर पर आज का मोबाइल  नेटवर्क और इससे संबंधित अन्य ये,उस व्यक्ति को ही अपना गुलाम बनाने का प्रयास करने लगती हैं,  क्योंकि लोग इथर नेट को नहीं समझ पाते हैं इसलिए, वे इसका फायदा उठा लेते हैं,जबकि हकीकत ये की, इस इथर नेट तक भी पहुंच पाना हर किसी के बस की बात नहीं है,तो यहां जिसे हम धर्म समझ रहे है,या एक ऐसा लोक जो की जीवित और जाग्रत हो वो है तो सही और उसका इस बात से कोई लेना देना नहीं है,लोग समाज या कोई धर्म उस व्यक्ति के बारे मे

Medicine Buddha Nagarjuna

Medicine Buddha TAYATA OM BEKANDZE BEKANDZE MAHA BEKANDZE RADZA SAMUDGATE SOHA Bhaisajyaguru, commonly referred to as the "Medicine Buddha", is the buddha of healing and medicine in Mahayana Buddhism. He is described as a doctor who cures suffering using the medicine of his teachings. Bhaisajyaguru is the head Buddha of the group of 8 healing Buddhas. The above mantra is the Tibetan version of the Sanskrit Dharani (sacred utterances) of Medicine Buddha: TADYATHA: OM BHAISAJYE BHAISAJYE MAHA BHAISAJYE SAMUDGATE SVAHA It translates as: Thus: OM, O Healer, O Healer, O Great Healer, My highest offerings The optional "Thus" is prefixed to provide continuity to a longer version of the mantra. The mantra is part of the Bhaisajya-guru-vaidurya-prabha-raja (the healer, teacher & king with a blue lapis lazuli glow) Sutra. The Twelve Vows of the Medicine Buddha upon attaining Enlightenment, according to the Medicine Buddha Sutra are: 1. To illuminate the world with his rad

नागार्जुन

बुद्ध की बहुत सी नॉलेज को जानते और समझ ते थे, बिल्कुल वैसे ही जैसे कि कोई डॉक्टर मशीन लगा कर ये जान पाता है कि मरीज की सही हालात क्या है, इसमें नागार्जुन का नाम मुुख्य रूप से आता है,जो कि उस समय के बुद्ध का पूर्व जन्म रहा होगा, जिसमें उनको भेसज्य के रूप में जाना जाता हैं, इसका सिर्फ इतना ही मतलब है, की बुद्ध ने उस समय जब वो बुद्ध बन चुके थे, अपनी कई जन्मों की यादों को समेट कर अपने खुद के दिमाग में सहेजा,साथ ही वो स्वयं उस समय भी टाइम ट्रैवल कर सकते थे,तो जब कोई भी कोई बुद्ध जैसा बनने की कोशिश करते है तो वे कभी बन नहीं सकते,वे केवल अपने ही DNA ke अनुसार व्यवहार करते रहते हैं,क्योंकि आज तक बुद्ध ने वास्तव मै क्या किया ये कोई नहीं जानता है और यदि किसी तरह उस समय में पहुंचने की कोशिश करेगा भी तो कुछ समझ ना इतना आसान नहीं होगा, ये बिल्कुल वैसा है जैसे कोई कहे कि में फलाने व्यक्ति हूं या में  कुछ पिछला बता सकता हूं तो मतलब सिर्फ इतना ही है,की दिमाग की ऐसी स्टेज में है, जो वर्तमान समय में एडजेस्ट नहीं हो पा रही है और स्वयं को  ऐसी कंफर्टेबल स्टेज में ले कर जाती या जाता हैं,जानहा वो खुश थे या

एक बार

एक बार की बात है बुद्ध,सुबह के समय ध्यान में  मतलब ये देख रहे थे कि उनका कोन सा शिष्य योग्य है, तब उन्होंने देखा कि एक शिष्य अपने बल से यह पता लगाने की कोशिश कर रहा है कि दुनिया कैसे बनी,इसका आदि और अंत क्या है,तब बुद्ध ने अपने आप को वांहा रिप्रेजेंट किया और रोक दिया,साथ ही यह भी कहा कि यह तुम्हारा छेत्र नहीं है, इसका मतलब है कि बुद्ध ऐसा बहुत कुछ जानते थे जो अन्य को नहीं, जानना चाहिए इसके अतिरिक्त एक मतलब यह भी है कि, शायद उन दृश्यों को देखने के अलावा दिमाग की इस्थिती यह होनी चाहिए कि वह यथा इस्थीती समझ सके,हो सकता है वह शिष्य उस समय इसके विपरीत रहा हो, यह गाथा धम्म पद की और विचार मेरे अपने, तो,यदि किसी को पसंद न आए तो क्षमा चाहती हूं 😍मल्लिका जैन 🧘

😄🙏 बुद्धि ऐसी भी🙏

"इस कहानी का उद्देश किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है"  🙏मै,अक्सर ये समझ ने कि कोशिश कर रही हूं कि बुद्ध ने क्या प्राप्त किया होगा कि,आज तक लोग उनको समझ ने का प्रयास कर रहे है,जबकि यदि में(धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचा रही सिर्फ अपनी इस्थीती को व्यक्त कर रही हूं) ये की सही व्यवस्थाओं के साथ इंसान को कैसे जीना चाहिए,क्योंकि बुद्ध से संबंधित सभी बाते ये व्यक्त करती हैं,उन्होंने किसी को भी,ये नहीं कहा कि तुम इसी को धर्म  मा न लो क्योंकि है इस बात को वैज्ञानिक तरीके से समझ या जो की उस समय के लोग मनुष्य आदि समझ पाते होंगे, प्रत्येक गाथा या अन्य ग्रंथ जो बुद्ध से संबंधित है,कोई भी ऐसा नहीं जो पढ़ कर अपनी स्वयं की बुद्धि का प्रयोग न करें,क्योंकि, चाहे हीनयान या फिर महायान,(या अन्य कोई मत हो तो भी,)तो आज का व्यक्ति वर्तमान में अपनी सामान्य ज़िन्दगी से ही बाहर नहीं निकल पा रहा है,तो धर्म फिर यही हो गया,और जो वास्तव में कुछ समझ कर आगे जाना चाहे वो कैसे आगे जाए,क्योंकि जब सामान्य व्यक्ति इसमें होगा तो,अपनी जरूरतों को पूरा करने का प्रयास करते है और,अपने अपने हिसाब से उसमे उलट

मन से बड़ा कुछ नहीं

गाथा    मनोपुब्बंगमा धम्मा,मनोसेट्टा मनोमया।   मनसा चे पदुट्टen ,भासति वा करोति वा।   ततो न दुःख मन्वेति चक्कं वा वहतो पदं।।1।।    अर्थ- मन सभी प्रवर्तियों का प्रधान है।  सभी धर्मं (अच्छा या बुरा) मन से ही उत्पन्न होते है।  यदि कोई दुषित मन से कोई कर्म करता है तो उसका परिणाम दुःख ही होता है।  दुःख उसका अनुसरण उसी  प्रकार करता है जिस प्रकार बैलगाड़ी का पाहिया बैल के खुर के निशान का पीछा करता है।    चक्षुपाल  कि कथा  स्थान : जेतवन  श्रावस्ती मन से बड़ा कुछ नहीं एक दिन भिक्षु  चक्षुपाल जेतवन विहार में बुद्ध को श्रद्धा सुमन अर्पित करने  आया रात्रि में वह ध्यान साधना में लीन टहलता रहा।  उसके पैर के नीचे कई कीड़े-मकोड़े दबकर मर गए।  सुबह में कुछ अन्य  भिक्षुगण वंहा आये और उन्होंने उन कीड़े-मकोड़ो को मारा हुआ पाया  . उन्होंने   बुद्ध को सूचित किया कि किस प्रकार चक्षुपाल ने रात्रि बेला में पाप कर्म किया था   बुद्ध  ने उन भिक्षुओ से पूछा की क्या उन्होंने चक्षुपाल को कोड़ो को मारते हुए देखा है  जब उन्होंने नकारात्मक उत्तर दिया तब बुद्ध ने  उनसे कहा कि जैसे उन्होंने चक्षुपाल को