क्या कोई ये समझ पाया है कि एक सामान्य व्यक्ति और धनवान में कितना फर्क है,सिर्फ इतना सा की धनवान के पास जो पैसा या संपत्ति है,उसमे से वाइब्रेशन ऑफ मनी कितनी खर्च हो गई,कितने सालों में कितनी, बिल्कुल वैसे ही जैसे कि एक सामान्य व्यक्ति उसी समय मूल्य चुका देता है,जो भी सामान वह खरीदता हैं,पर जब कोई इस बात को समझ ले कि कितने वर्षों में कोन सी मूल्यवान मुद्रा का उपयोग किया जाएगा,और वह मुद्रा कब तक चलेगी, हां कुछ हद तक ये किसी देश के स्टॉक एक्सचेंज जैसा है,मगर इससे बेहतर और एक स्टॉक एक्सचेंज है, जिसे आज कम ही व्यक्ति समझ ते, वो है धर्म का वैज्ञानिक आधार,जो अपने वर्ग के समूहों को संजो कर, उन्हें आगे लेे जाने की कोशिश करते हैं,व्यक्ति जो पैसा धर्म के लिए खर्च करते हैं, वो ही उनके काम आ पाता है,चाहे वो किसी भी धर्म के क्यो न हो,क्योंकि बाकी तो सब खर्च हो गया,और अब धर्म में किसने कब कितना पैसा लगाया,यह हिसाब कन्हा होता है?ये वाकई में अश्च रय्य का विषय है,तो आज के समय में जब परिभाषा बदल रही हैं तो इसका मतलब ये हुआ की,क्या स्वर्ण की परिभाषा बदल गई,या फिर कोई दूसरा मेटल प्रयोग किया जाता हैं,क्योंकि