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सितंबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हाइजीन के मायने समय के साथ और धर्म😃

क्या कोई ये समझ पाया है कि एक सामान्य व्यक्ति और धनवान में कितना फर्क है,सिर्फ इतना सा की धनवान के पास जो पैसा या संपत्ति है,उसमे से वाइब्रेशन ऑफ मनी कितनी खर्च हो गई,कितने सालों में कितनी, बिल्कुल वैसे ही जैसे कि एक सामान्य व्यक्ति उसी समय मूल्य चुका देता है,जो भी सामान वह खरीदता हैं,पर जब कोई इस बात को समझ ले कि कितने वर्षों में कोन सी मूल्यवान मुद्रा का उपयोग किया जाएगा,और वह मुद्रा कब तक चलेगी, हां कुछ हद तक ये किसी देश के स्टॉक एक्सचेंज जैसा है,मगर इससे बेहतर और एक स्टॉक एक्सचेंज है, जिसे आज कम ही व्यक्ति समझ ते, वो है धर्म का वैज्ञानिक आधार,जो अपने वर्ग के समूहों को संजो कर, उन्हें आगे लेे जाने की कोशिश करते हैं,व्यक्ति जो पैसा धर्म के लिए खर्च करते हैं, वो ही उनके काम आ पाता है,चाहे वो किसी भी धर्म के क्यो न हो,क्योंकि बाकी तो सब खर्च हो गया,और अब धर्म में किसने कब कितना पैसा लगाया,यह हिसाब कन्हा होता है?ये वाकई में अश्च रय्य का विषय है,तो आज के समय में जब परिभाषा बदल रही हैं तो इसका मतलब ये हुआ की,क्या स्वर्ण की परिभाषा बदल गई,या फिर कोई दूसरा मेटल प्रयोग किया जाता हैं,क्योंकि

वर्तमान समय और धर्म

वास्तव में कभी भी,या किसी भी समय में यह नहीं कहा जा सकता कि,जो में जानती हूं वह ही सच है सच इससे आगे,भी ही सकता हैं,तो आज के वर्तमान समय याने sun2020 मतलब मेरे हिसाब से ये दोनों तरह की ताकत को ज्यादातर व्यक्ति और किसी समय पर राज करती हैं,उन्हें सामान अधिकार दिया गया है वो आगे आए और जो चाहती है कर सके पर,क्या व्यक्ति ये जानते हैं वो शक्तियां कोन सी है,शायद कुछ व्यक्ति जरूर इसके बारे में जानते होंगे,🌝(ये हमेशा की तरह वो शक्तियां हैं जिन्हें व्यक्ति अच्छा या बुरा समझ लेते हैं और,फिर उसके अनुसार अपनी ज़िन्दगी को जीते हैं) तो फिर ,"धर्म" क्या है, वेल चलिए थोड़ा सा मेरे विचारों के अनुसार समझ ते हैं, धर्म का मतलब होता है,व्यक्ति,समझ,उससे संबंधित कानून,और राजनीति, लेकिन जब कोई भी साधु या संत अपने अनुसार व्यवहार करते हैं तो,इसी तरह उनकी भी अपनी व्यवस्थाएं बन जाती हैं, तो जैसे व्यक्ति अपनी कई बातों को किसी को नहीं बताते, इन लोगो को भी उस सुप्रीम से ,(यदि कोई वांहा तक पहुंच सका तो🌝,क्योंकि व्यवस्था इसी होती है कि वन्हॉ कोई पहुंच न सके,क्यो ?क्योंकि यदि हर किसी ने आदि और अंत जान लिया त

अवेकनिंग विथ सेल्फ💆

कई लोगो ने बुद्ध की कथाओं को सुना,और बहुतों ने उसे समझ ने कि लगातार कोशिश भी की,और अब भी करते रहते हैं,तो उनमें से एक कथा है अंगुली माल की,तो सबसे पलहले वर्तमान के उन सभी गणमान्य व्यक्ति यो से, माफ़ी क्यो शायद इसका उत्तर आगे जान जाएंगे,! 😄कोई बेहद खास समय रहा होगा जब बुद्ध अंगुली माल के पास पहुंचे,तो कथा कहती हैं (ऐसा मैने भी सुना है) की अंगुली माल बुद्ध को लगातार चलते हुए देख रहे थे,जबकि वो खुद एक ही स्थान पर खड़ा हुए था,आगे की कथा सभी जानते ही हैं, असल में बुद्ध अंगुली के उन सभी तकलीफों को स्वयं ही लेे रहे थे,जो अंगुली माल को क्रूर बना रही थी,मतलब उस इस्प्रिट गाइड  को जो अंगुली माल को हत्या के लिए और वास्तविकता से दूर कर देती थी,मतलब उसके दिमाग के किसी हिस्से में क्रूरता भर देती थी,जब बुद्ध ने जान और देख लिया की अब अंगुली माल का समय पूर्ण हो गया हैं और वो अपने तय लक्ष्य से दूर हो जाएगा,तब सही समय पर बुद्ध ने उसे उस िइस्थीती में पहुंचने में सहायता कि जो उसके जीवन का लक्ष्य था,तो इसका मतलब स्पष्ट है,बुद्ध ( जो उस समय में थे और जिनकी कथाओं को हम लोग सुनते हैं),वे स्वयं में इसी कई स्पिर

🏔️ध्यान 👥

ध्यान पर बहुत से सम्मानित व्यक्ति बहुत कुछ कह चुके हैं,फिर भी मै इसे अपने शब्दो में व्यक्त करने की कोशिश करती हूं,तो,कोई भी व्यक्ति यह नहीं कह सकता कि एक तरह कि प्रणाली सभी पर निरंतर चलती रहेगी, यहां ध्यान मेरे हिसाब से सिर्फ एक ऐसी तलाश है जो उस व्यक्ति को जो वास्तव में हकीकत को जानना और समझना चाहते हैं,उन लोगो का अलग अलग तरह से, संग्रहित किया हुआ नालेज है,जो विभिन्न कलचर,लोक रंग से भर पूर हैं,तो अब सवाल ये है की आज का युग क्या पहले से अलग है या वैसा का वैसा ही है,तो सच ये है की,यह युग जिसमें हम जी रहे है, हर तरह से बेहतर है, सिर्फ इतना समझ सा जाए की जो हमारी हकीकत है,उसके साथ अपनी महत्वाकंक्षाओं का तालमेल केसे किया जाए,तो अब जो व्यक्ति ध्यान कर रहा है,उसने कोन सी प्रक्रिया को स्वीकार किया है,और इसके साथ ही,किसको उसे अपने से अलग करना होगा,ये समझ ना,खुद उस व्यक्ति के लिए आसान नहीं जो लगातार ध्यान पर फोकस कर रहे है,जिनमे क्योंकि अंतिम इस्थिती निर्वात होती हैं,अब इसे शून्य कह सकते हैं,तो कोई जीवित रहते हुए शून्य में जा कर वापस से अपनी वास्तविक जीवन को स्वीकार कर जीने लगे, वैसा ही जैसा उस

बुद्ध और महावीर

बुद्ध और महावीर दोनों ही सम कालीन थे,जिसका सबूत कई जगह मिलता है जिनमे से अजंता एलोरा गुफाएं एक है,जंहा कई तरह की रचनाएं निर्मित हुई हैं और लोगो ने, उसे सिर्फ अपनी बेवकूफी के कारण,या समझ में नहीं आ पा ने के कारण कुछ और ही समझ लिया,अब ज्यादातर समय से ऐसी सभी जगह अर्कलाजी डिपार्टमेंट ने टूरिस्ट के लिए दर्शनीय स्थल बना दी है,जबकि वो उनको लोगो की ध्यान स्थली भी रही हैं,अब जब लोग वनहा पर रहे तो उनके साथ विभिन्न तरह की घटनाएं हुई जिन्हे लोगो ने अपनी अपनी सोच के हिसाब से समझा, तो इस अजंता एलोरा,क्या है,ये मै दावे से नहीं कह सकती की मै ही अब कुछ जानती हूं,पर,जब कोई इंसान की वास्तविक जीवन में देखता है,तो पता चलता है,सब कुछ उतना अच्छा नहीं है, यनहा लोग,उन हकीकत को देखना और समझ ना चाह रहे है जो बीते समय में हुई थी,पर आज हकीकत बदल चुकी हैं,लोग जिनके पास इस बात की क्षमता है जो बीते समय में जा सके या उसे क्रिएट कर सके,वे उसे कई बार बनाते और बिगड़ते रहते, हैंक्योंकि वो ये जानते हैं कि आम इंसान के बस की बात है ही नहीं,की वो वह कर सके जो ये सब समर्थ वान आज के समय के सम्मानित लोग कर रहे हैं,क्योंकि इन सम

आत्मा और शरीर

व्यक्ति का शरीर, स्वयं में, सक्षम है,और उसमे अनत संभावनाएं हैं,आज के समय में जब लोग टेक्निकल उपकरणों के साथ जीते हैं,तो वे उनका उपयोग सीख  रहे हैं,(साथ ही पहले भी ऐसा होता रहा है)तो बुद्ध ने आत्मा से इंकार क्यो किया,इस पर कुछ,कोई तभी बोल सकता है,जिसने स्वयं इस बात को महसूस कर लिया हो,मतलब,शरीर की वो इस्थिती जिसमें को कंसेंसस रह कर अपने कार्यों को पूरा करने की कोशिश कर रहा है, तो ज्यादातर लोग मृत्यु के बाद ही इसे प्राप्त कर पाते हैं, और फिर उनका प्रयास शुरू होता,की वे किसी तरह से खुद को स्थापित कर सके। तो जब बुद्ध ने इसे जाना तो ये वो समय था जब वो राज महल में ही थे,अब क्योंकि उन्होंने जब तक बीमारी, बुढ़ापा और मृत्यु इसे नहीं देखा,तो उनके लिए सिर्फ यौवन ही सत्य था,(इसे ज्यादातर व्यक्ति हीनयान या महायान तंत्र कहते है) तो अब जब बुद्ध ने यह जाना की बाकी भी कुछ होता है तो उन्होंने उसे समझ ने प्रयास शुरू किया,लेकिन महल में पुनः पुनः वहीं सब दोहराती हुई बाते थी,इसलिए उनको नए उपुक्त स्थान की आवश्यकता महसूस हुई होगी,और उन्होंने फिर से स्वयं को इसी परिस्थितियों में रखा जो बिल्कुल विपरीत थी,(अब यह

मिनिग ऑफ ओरा एंड स्पिरिट वर्ल्ड

क्या हुआ होगा जब उस समय के बुद्ध ने अपने समकालीन लोगो को किसी ऐसे की पूजा या वार्शिप करते हुए देखा होगा, जिनमे कुछ थोड़ी संभावनाएं रही होंगी,? आज इसे मै अपने आस पास महसूस करू तो भी क्या ये सच में स्पिरिट वर्ल्ड हैं,🌝 यदि ये आज के समय का सत्य है कि व्यक्ति के साथ वहीं आगे चल सकते हैं,जो उसके साथ पहले से चल रहे है,मतलब ऐसी बाते जो उसने अपने परिवार ,मित्र,और बाकी लोगो से सीखी, वे ही उसके साथ चलती हैं और जब कोई ओरा को स्पष्ट करने की कोशिश करता है,तो वह व्यक्ति जो ये कार्य कर रहा है सामने वाले से उसकी वो सद्भावनाएं लेे लेता है जो उसके बेनिफिट में सहायक होती हैं,कभी कभी कोई हायर एंग्री यंग गुस्से वाला हुआ तो, डिस्ट्रक्टिव, भी लेे लेते हैं और उन्हें किसी न किसी ऑब्जेक्ट में जिन्हे लोग रत्न या ऐसे ही किसी और नाम से अपने सुरक्षा के लिए उपयोग करते हैं,उसमे बंद कर देते हैं,ये सिर्फ इतना ही है जिसे समय समय पर निकलते हैं जिसे क्लिनिग प्रोसेस कहा जाता हैं उसकी जगह किसी अन्य को इंप्लांट कर देते हैं,अब यह पर जो इस्पिरिट हैं वो खुद को डील कैसे करें, तो बंद रहेगी,तो सदैव ही निकालने का प्रयास करेगी, और

कार्य और कार्य प्रणाली

कर्म का सिद्धांत,उतना पेचीदा नहीं है जितना हम समझ रहे है,बल्कि ये तो आसान है,क्योंकि सिर्फ ये समझ में आता ही नहीं,ऊपर से व्यक्ति ये कभी समझ नहीं पाता कि उसके थॉट का ओरिजिनल वास्तविक नियंत्रण कान्हा है,जो दिमाग में विचारो को डाल रहा है,जब तक आप या कोई व्यक्ति इस बात को समझ की उसके साथ हो क्या रहा है तब तो ज़िन्दगी ही पूरी हो जाती हैं,ऊपर से दिमाग कभी उतना एक्टिव होता ही नहीं,,क्योंकि विचारो को डालने वाली श्रृंखला सिर्फ वही विचााभिव्यक्ति देती हैं, जो वो खुद चाहते है,और इंसान पूरी ज़िन्दगी ये समझ नहीं पाता उसने आखिर किया क्या जो तकलीफ़ उठानी पड़ रही है,या सुख भोग रहा है, दोनों एक बरा बर, तो फिर" किस बात का सिद्धांत, यान्हा तो कर्म भी व्यक्ति के हांथ में नहीं है"😀 जो सुख उठा रहा है वो अपने आप में खुश है,और जो दुःखी है वो सुख की तलाश में हैं और इंट्रेस्टिंग दोनों ये जानते ही नहीं की से किसके नियंत्रण में ये सब कर रही है 🌝 तो यदि मै इस बात को समझ गई हूं तो भी मुझे, अब तक नियंत्रक का पता नहीं चला, इसका मतलब स्पष्ट है की मुझे अभी बहुत कुछ सीखना है,पर सिखाएगा कोन? या मै भी यही का ह

धर्म और राजनीति

अक्सर जब भी धर्म के बारे में कोई एक विचार धारा,प्रगट की जाती हैं तो,इसलिए नहीं कि वह व्यक्ति अपने आप को सर्वे सर्वा बता रहा है,बल्कि इसलिए, की वह व्यक्ति ये जानता और समझ ता है कि विचारधारा क्या कर सकती हैं, बुद्ध ने कभी भी किसी धर्म का निर्माण नहीं किया न ही ये कहा कि इसको ही मानो, उन्होंने ये बताया कि आम इंसान भी चाहे और,उसके द्वारा किए गए कार्य उसका साथ दे दे तो वह आगे जा सकता है,ये उस समय की बात थी, आज के समय में लोग जो इस अवस्था में पहुंच जाते हैं, की वे अपने शारीर से बाहर,निकाल सके,और वो ये चाहते है कि उस मार्ग पर आगे जाए तो, उसके आस पास की परिस्थिति है विशेष तौर पर आज का मोबाइल  नेटवर्क और इससे संबंधित अन्य ये,उस व्यक्ति को ही अपना गुलाम बनाने का प्रयास करने लगती हैं,  क्योंकि लोग इथर नेट को नहीं समझ पाते हैं इसलिए, वे इसका फायदा उठा लेते हैं,जबकि हकीकत ये की, इस इथर नेट तक भी पहुंच पाना हर किसी के बस की बात नहीं है,तो यहां जिसे हम धर्म समझ रहे है,या एक ऐसा लोक जो की जीवित और जाग्रत हो वो है तो सही और उसका इस बात से कोई लेना देना नहीं है,लोग समाज या कोई धर्म उस व्यक्ति के बारे मे